आत्मा की भूख जब भी हुंकार भरे
क्यों न जीवन फिर किसी से प्यार करे
प्यार परिणय में मिले क्या है जरूरी
सामाजिकता संस्कृति की होती धूरी
वलय की परिक्रमाएं वही धार रहे
क्यों न जीवन फिर किसी से प्यार करे
यूं किसी से प्यार हो जाना असंभव
तार मन के जुड़ भरें निखार रच भव
एक धुआं दिल उठे लौ की पुकार करे
क्यों न जीवन फिर किसी से प्यार करे
प्रौद्योगिकी है देती प्रायः नव धुकधुकी
खींच लेता भय मन चाह लगाए डुबकी
अपना मन जब असीमित दुलार भरे
क्यों न जीवन फिर किसी से प्यार करे।
धीरेन्द्र सिंह
25.11.2024
08.46
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