अतिरंगी अतिरागी मिली सजनिया
अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया
सूफी सोचें यह प्रभु का ही सम्मान है
प्रेमी सोचें प्रियतमा सुघड़ अभिमान है
जैसी रही भावना मन वैसा नचनिया
अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया
हर मन सोचे, परिवेश नोचे, बोले धोखे
हर तन डोले, रस्सी तोड़े, सुप्त अंगों के
उन्मुक्त गगन का गमन चाँद चंदनिया
अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया
सूफी हों या बैरागी या प्रकंड वीतरागी
सब चाहें उन्मुक्तता, कर सेवा बड़भागी
प्यार और पूजा, एक कलश धमनियां
अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया।
धीरेन्द्र सिंह
23.06.2024
15.41
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