अपनी अठखेलियों का समंदर बनाइए
बिन पाल नौका का भ्रमण फिर कराइए
यह आपकी है कुशलता और विशिष्टता
किनारे खड़ा मन न और भरमाइए
लहरों की चांदनी सा होगा भाव नृत्य
एक-दूजे के होंगे पूरक निज कृत्य
जल कंपन की भावनाओं को समझाइए
किनारे खड़ा मन न और भरमाइए
अस्तित्व के विकास में है व्यक्तित्व गूंज
कामनाएं मेरी रहीं, आपका निजत्व पूज
एक अर्चना है नौका बाती तो सुलगाईए
किनारे खड़ा मन न और भरमाइए।
धीरेन्द्र सिंह
23.06.2024
16.05
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें