सत्य की चुन्नटें असत्य खुले केश हैं
नारियां ऐसी भी जिनके कई भेष हैं
कौन जाने किस तरह खुली भावनाएं
धुंध सी उभर रहीं कामनाएं अशेष हैं
प्यार का शामियाना अदाओं के शस्त्र
घायल, मृतक कई उत्साह पर विशेष है
शामियाना वहीं लगे जहां नई संभावनाएं
पुराने को अचानक त्यजन जैसे मेष है
अब भी सबला है अपने ही कर्मों से
उन्मादित, दुस्साहसी लिए संदेश है
नाम, प्रसिद्धि, दबंगता आसीन हो
यह हिंसक, आक्रामक कमनीय शेष है।
धीरेन्द्र सिंह
23.06.2024
07.25
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