कृष्ण तृण तृण में
तृण तृण में रण है
कंस कारावास दंश
कृष्णावतार प्रण है
जन्म कब रहा आसान
घमासान कई गण है
जन्म होते मॉ से ज़ुदा
यह अनूठा ग्रहण है
जन्म ही धन्य है
अन्य सब कृपण है
प्रफुल्लित जागृत सहज
सशक्त कण कण है
कृष्ण जन्माष्टमी सुखद
अनहद सम्मिश्रण है
पालने में ही युद्ध क्षेत्र
हर जीवन कृष्ण कृष्ण है ।
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