आसमां छूट रहा कसी मुट्ठी से
लड़ने लगी ज़िन्दगी चुटकी से
कितनी तन्हाईयों ने अब आ घेरा
डेरा और डरे उनकी घुड़की से
मान लेगा मन जो भी कहें वह
कहां फिर मुक्ति मनकी कुड़की से
प्यार समर्पण का दर्पण रहा हमेशा
तर्पण प्यार का प्रिये की खिड़की से।
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