राष्ट्र है
धृतराष्ट्र ना बना
करोड़ों की शान
मन में है घना
राष्ट्र है
शास्त्र कई आधार बना
जीवन के कई पथ बना
करे सामाजिक संघटना
राष्ट्र है
शस्त्र को न भोथरा बना
शस्त्र पूजा कर अर्चना
काले मेघ हुंकारे घना
राष्ट्र है
भ्रष्ट्राचार शिष्टाचार न बना
आवाज को बुलंद बना
भ्रस्टाचारी काटते तना
राष्ट्र है
श्रेष्ठ महान प्रजातंत्र बना
स्वतंत्रता में बलिदान घना
बलिदानियों पर शीश नवा
राष्ट्र है
मात्र खास दिवसों में न समा
रोम रोम में तिरंगा की बसा
नमन समर्पण गर्वित मन सजा।
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