मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

2976 नारी देह

 (बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थलों पर बिखरे पेन ड्राइव को लोगों ने उठाया और देखा तो जो पाया रचना में उल्लिखित है। सूचना आधार : "आज तक" दिनांक 30.04.2024 का "ब्लैक एंड व्हाइट" कार्यक्रम।)


पेन ड्राइव वीडियो की सत्यता है लंबित

66 का पिता 35 का बेटा करें अचंभित


पिता-पुत्र दोनों करें नारी दैहिक शोषण

आस्चर्य कि जनता हितों का करें पोषण

जनप्रतिनिधि कैसे हुए, चुम्मा चुम्बित

66 का पिता 35 का बेटा करे अचंभित


क्या शक्ति का स्वरूप है देह उद्दंडता

प्रभावित नारी की कौन सुने दुखव्यंजना

वर्चस्वता किस तरह करे नारी गुम्फित

66 का पिता 35 का बेटा करे अचंभित


प्रज्जवल रेवन्ना का ड्रायवर कार्तिक

नारी देह शोषण, देखा हुआ जब अधिक

पेन ड्राइव कैद कर बांटा वासना क्रन्दित

66 का पिता 35 का बेटा करे अचंभित


वीडियो में है 2976 नारी देह का मर्दन

पुरुष की शक्ति का बेलगाम क्रूर नर्तन

मीडिया बतला रही हूं लूटें देह दम्भित

66 का पिता 35 का बेटा करे अचंभित


संदेशखाली से वृहद यह देह मर्दन

विकृत वासना का कैसा यह नर्तन

दबंगता से क्या बलात्कार है समर्थित

66 का पिता 35 का बेटा करे अचम्भित


धन्य हो ड्राइवर कार्तिक अति संस्कारी


नारियों के क्रंदन को वीडियो में उतारी

पौरुषता के जीवंत प्रमाण हृदय स्पंदित

66 का पिता 35 का बेटा करे अचंभित।


धीरेन्द्र सिंह

01.05.2024

10.25

सोमवार, 29 अप्रैल 2024

गर्मी

 तन ऊष्मा, मन ऊष्मा कितनी सरगर्मी

वातायन बंद हुए घुडक रही है गर्मी


गर्म लगे परिवेश गर्म चली हैं हवाएं 

पेड़ों की छाया में आश्रित सब अकुलाएं

हे सूर्य अपनी प्रखरता को दें नर्मी

वातायन बंद हुए घुडक रही है गर्मी


वृक्ष कट रहे क्रमश जंगल भी उकताएं

जंगल अग्नि लपट में हरियाली मिटाएं

कितने कैसे रहें पनप प्रकृति अधर्मी

वातायन बंद हुए घुडक रही है गर्मी


कूलर मर्यादित एसी ही हाँथ बटाए

निर्बाधित गर्मी को यही मात दिलाए

मौसम भी करने लगा अब हठधर्मी

वातायन बंद हुए घुडक रही है गर्मी।


धीरेन्द्र सिंह


30.04.2024

10.36

रविवार, 28 अप्रैल 2024

दालचीनी

 अनुभूतियां अकुलाएं बुलाएं मधु भीनी

तीखा, मीठा, गर्म सा मैं दालचीनी


नवतरंग है नव उमंग है उम्र विहंग

जितना जीवन समझें उतना रंगविरंग

मुखरित हो अनुभूतियां ओढ़े चादर झीनी

तीखा, मीठा, गर्म सा मैं दालचीनी


अन्नपूर्णा स्थान है घर की रसोई

संग मसालों के दालचीनी भी खोई

क्षुधा तृप्ति निरंतर जग की कीन्ही

तीखा, मीठा, गर्म सा मैं दालचीनी


जुगनू सी जलती-बुझती हैं अभिलाषाएं

हृदय भाव का हठ किसको बतलाएं

स्व कर उन्मुक्त धरा सजल रस पीनी

तीखा, मीठा, गर्म सा मैं दालचीनी।


धीरेन्द्र सिंह

29.04.2024


09.24

तलाश

 आप अब झूमकर आती नहीं हैं

मौसम संग ढल गाती नही हैं

योजनाएं घर की लिपट गईं है

उन्मुक्त होकर बतियाती नहीं हैं


यहां यह आशय प्रणय ही नहीं

पर जगह बतलाएं प्रणय नहीं है

सैद्धांतिक, सामाजिक बंधन है

ढूंढा तो लगा आप कहीं नहीं हैं


हो गया है प्यार इसे पाप समझेंगी

सोशल मीडिया क्या पुण्यात्मा नही है

यह सोच भी मोच से लगे ग्रसित

प्यारयुक्त क्या मुग्ध आत्मा नहीं है


दूरियां भौगोलिक हैं मन की नहीं

क्या मन की भरपाई नहीं है

कविता है एक प्रयास ही तो है


क्या कोई ऐसी चतुराई नहीं है।


धीरेन्द्र सिंह

28.04.2024

11.04

शनिवार, 27 अप्रैल 2024

संसार

 मन डैना उड़ा भर हुंकार

बचा ही क्या पाया संसार


तिल का ताड़ बनाते लोग

जीवन तो बस ही उपभोग


उपभोक्ता की ही झंकार

बचा ही क्या पाया संसार


कलरव में वह संगीत नहीं

हावभाव में अब गीत नहीं

निज आकांक्षा ही दरकार

बचा ही क्या पाया संसार


कृत्रिम प्यार उपभोग कृत्रिम

एकल सब जीवन मिले कृत्रिम

परिवार का कहां है दरबार

बचा ही क्या पाया संसार


भाव बुलबुले व्यवहार मनचले

सोचें कौन है दूध धुले

शक-सुबहा नित का तकरार

बचा ही पाया क्या संसार


मन डैना उड़ता मंडराए

दूसरे डैने यदि पा जाएं

परिवर्तन की चले बयार

बचा ही क्या पाया संसार।


धीरेन्द्र सिंह

27,.04.2024

08.31

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

देह की बात

 देह की बात नहीं, दिल के बहाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तराने


कोई कहे खुलापन अश्लील भौंडापन

कोई कहे देह वातायन है सघन

देह वलय तरंगित ताकते मुहाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तराने


गुड टच बैड टच प्री स्कूल बताए

मच-मच देह क्रूरता न रुक पाए

प्रेम कहां प्यार कहां विक्षिप्त मनमाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तराने


दो पंक्ति चार पंक्ति काव्य रचना

देह की उबाल को प्यार कह ढंकना

प्यार रहे मूक, समर्पित स्व बुतखाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तस्राने


एक प्रदेश हर लड़की का समवय भईया

सामाजिक बंधन में लड़की दैया-दैया

दूजे प्रदेश में लड़की झुकाए सब सयाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तराने।


धीरेन्द्र सिंह


26.04.2024

16.39

गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

भोर बहंगी

 भोर भावनाओं की ले चला बहंगी

लक्ष्य कहार सा बन रहा सशक्त

वह उठी दौड़ पड़ी रसोई की तरफ

पौ फटी और धरा पर सब आसक्त


सूर्य आराधना का है ऊर्जा अक्षय

घर में जागृति, परिवेश से अनुरक्त

चढ़ते सूरज सा काम बढ़े उसका

आराधनाएं मूक हो रहीं अभिव्यक्त


भोर की बहंगी की है वह वाहक

रास्ते वही पर हैं ठाँव विभक्त

कांधे पर बहंगी और मुस्कराहट

भारतीयता पर, हो विश्व आसक्त


भोर भयी ले चेतना विभिन्न नई

बहंगी वही पर धारक है आश्वस्त

सकल कामना रचे घर चहारदीवारी

कर्म भोर रचकर यूं करती आसक्त।


धीरेन्द्र सिंह

25.04.2024


12.15