सोमवार, 16 दिसंबर 2024

नारी

 पग बढ़ा अंगूठे से खींचती हैं क्यारी

लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी


चाह है, राह है, उमंगों की घनी छांह

उठती, उड़ती रुक जाती है सिकोड़ बांह

हाँथ होंठों पर रखी जब भावना किलकारी

लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी


क्या बुरा है क्या भला है नारीत्व में पला

संस्कृति और संस्कार इनका, जग है ढला

संरचना यही संरचित यही लगें सर्वकार्यभारी

लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी


लखि उपवन दृग चितवन भावनाएं गहन

जो सोचें पूरा न कहें मर्यादाओं के सहन

खंजन नयन कातिल मुस्कान लगें हितकारी

लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी।


धीरेन्द्र सिंह

16.12.2024

16.07



रविवार, 15 दिसंबर 2024

जाकिर

 शब्द थाप से मिल गए भावों को सहला

जाकिर हुसैन आवाज का मिजाज तबला


श्रेष्ठतम संगीतज्ञ संग की हैं जुगलबंदी

तबला है इश्क़ कैसा की है नुमाइंदगी

तिहत्तर की उम्र में गए हो गया मसला

जाकिर हुसैन आवाज का मिजाज तबला


थिरकती अंगुलियों का तबले से वह प्यार

झूमते गर्दन नाचते केश तबला वादन साकार

कहां तबले पर जादू का कार्यक्रम है अगला

जाकिर हुसैन आवाज का मिजाज तबला।


धीरेन्द्र सिंह

15.12.2024

22.46



शनिवार, 14 दिसंबर 2024

मर-मर जीने में

 कोई जब याद करता है बरसते भाव सीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में


हर घड़ी प्यार की पुचकार भरी जग आशाएं

क्या पड़ी किसपर कोई भला क्यों बतलाए

सजाता रचकर ऐसे विश्वास पहने नगीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में


कहां से बांधकर लाती हवाएं यादों के बस्ते

कहां से भाव आ जाते कसक यादों से सजते

यह यादें भी हैं कैसे जानती बरसना सीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में


कोई छूटकर भी छूटता नहीं लगे छूट गया

नयन भाव फूटकर भी फूटता नहीं बने नया

एक अंकुर निर्जला गुल खिलाता सुगंध सीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में।


धीरेन्द्र सिंह

15.12.2024

13.06



कौआ

 कौआ चला हंस की चाल

गिरगिट ऑरकेस्ट्रा दे तान

लगे गिलहरी सा यह जीवन

पेड़, डालियाँ जीवन अनुमान


गिरगिट सा रंग बदलता ऑरकेस्ट्रा

तीन धारियां ब्रांड अभिमान

कौआ इसमें चपल बन गया

हंस लगे बस तिरते अभिज्ञान


जो जीता है वही सिकंदर

कांव-कांव कौआ आत्मज्ञान

हंस छवि सुंदर सा खुश है

और बनाए कौआ नित मचान।


धीरेन्द्र सिंह

14.12.2024

11.35




शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

पीठासीन

 सत्य की अर्जियां तो दीजिए

कथ्य की मर्जियाँ भी लीजिए

प्रजातंत्र की है यह स्वतंत्रता

बरसते भाव रीतियों से भीगिए


आप विजेता नेता सा चल रहे

ठाठ में तो बाट को तो देखिए

कल तलक जयकारा लगानेवाला

किस कदर अनदेखा हुस्न हिए


दिल की संसद में है वाद-विवाद

शोर अनियंत्रित कुछ तो कीजिए

प्यार में पक्ष-प्रतिपक्ष द्वंद्व चरम

समर्पित है प्रणय पीठासीन लीजिए।


धीरेन्द्र सिंह

13.12.2024

19.30




गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

चेहरा

 बहुत भोला सा निष्कपट चेहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा


जीवन चुनौतियों की सिमटी हवाएं

संघर्ष नीतियों की विजयी पताकाएं

शालीनता से गर्वित चले फहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा


दृष्टि देख रही थी बांधे बवंडर

भृकुटि लगे बांधे हुए समंदर

अवलोकन में तेजस्विता दोहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा


हर चेहरा लगे ब्रह्मांड का एक विश्व

बंद अधर लगे सूचनाओं के अस्तित्व

हर चेहरे को प्रणाम भाव गहरा

देखते बोला नयन लिपट चेहरा।


धीरेन्द्र सिंह

12.12.2024

20.47 




बुधवार, 11 दिसंबर 2024

जीवन

 जीवन

एक प्यास

एक आस

एक तलाश

पर क्या यह है सच?

खरगोश सा है

अधिकांश जीवन

एक बनाई परिधि में

निर्द्वंद्व भटकना

और रहना प्रसन्न

उसी परिवेश में

जाने-पहचाने चेहरे बीच;


कौन तोड़ निकल पाता है

दायरा अपना

एक अनजानी चुनौती

का करने सामना,

आए चुनौतियां

दौड़े अपने 

सम्प्रदाय धर्म स्थली

कामना-थाम ना;


अधिकांश जीवन

अपनी मुक्ति का

करता है भक्ति,

एक उन्मुक्त उड़ान की

कामना में,

जीवन-जीवन को छलते

यूं ही

गुजर जाता है।


धीरेन्द्र सिंह

12.12.2024

08.41