सोमवार, 21 जून 2021

टहनियां

 डालियां टूट जाती हैं

लचकती हैं हंस टहनियां

आप समझे हैं समझिए

कैसी इश्क की नादानियां


एक बौराई हवा छेड़ गई

पत्तों में उभरने लगी कहानियां

टहनियां झूम उठी प्रफुल्लित

डालियों में चर्चा दिवानियां


गुलाब ही नहीं कई फूल झूमे

फलों को भी देती हैं टहनियां

डालियां लचक खोई ताकती

गौरैया आए चहक करे रूमानियां।


धीरेन्द्र सिंह

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

 अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस आज

होता सहज नहीं विश्वास

कल तक अनदेखी विद्या का

आज सकल सिद्ध है राज


योगी रामदेव की महिमा मुस्काए

एक चना का है यह अंदाज

एक ब्रह्म एक ही आत्मा एकं अहं

विस्मित निरखे परवाज


अथक परिश्रम अथक सहयोग

फला_फूला विस्तृत हुआ योग

भारत विश्व योग गुरु बन स्थापित

संचालित नित घर_घर यह योग।


धीरेन्द्र सिंह

शनिवार, 19 जून 2021

फेसबुकिया बीमारी

 मैं नहीं जा पाता हूं

सबकी पोस्ट पर

देने अपनी हाजिरी

कभी टिप्पणियां

अक्सर लाइक,

यह भीड़ तंत्र

साहित्य की 

फेसबुकिया बीमारी है

कल तुमने किया लाइक

तो आज मेरी बारी है,

मन की रिक्तता

नहीं होती जब संतुष्ट

भावों को अभिव्यक्ति दे

तब भागता है मन

भीड़ की ओर

लोग आएं और मचाएं

निभावदारी का शोर,

नहीं गाता हूं 

दूसरों के लिए

बेमन गाने, टिप्पणियां, लाइक

भ्रमित प्रशंसा काल में

साहित्य की धूनी

बुला लेती है खुद ब खुद

समय के एक भाग को।


धीरेन्द्र सिंह


मेरी सर्वस्व

 प्यार उजियारा पथ, डगर दर्शाए

आपकी रोशनी से जिंदगी नहाई है

तृषित न रह गई तृष्णा कोई अपूर्ण

तृप्ति भी आकर यहां लगे शरमाई है

 

पथरीली राहें थीं कंकड़ीली डगरिया

बनकर मखमल तलवों तक पहुंच आई है

ऐसी शख्सियत मिलती भला कहां

चांदनी भी है और अरुणाई है


रुधिर के कणों में डी एन ए तुम्हारा भी

खानदानी बारिश सा तुम भिंगाई हो

तुम्हें सर्वस्व कह दिया तो सच ही कहा

संपूर्णता संवरती तुम्हारी जगदाई है।


धीरेन्द्र सिंह

बुधवार, 16 जून 2021

विश्लेषक

 शर्तें तुम्हारी होती थीं

बालहठ मेरा

तुम विश्लेषक रिश्ते

मैं एक चितेरा,

कलरव की संध्या बेला में

अनगढ़ दृश्य बिखेरा

समूह में लौटते पक्षी

देते दार्शनिक टेरा,

मनगढ़ जीवन ऊबड़_खाबड़

निर्धारित ही है बसेरा,

भ्रमित भाग्य या कर्म उन्मत्त

क्या ले जाए मेरा,

जिसकी बगिया वही है माली

बेहतर मेरा डेरा।


धीरेन्द्र सिंह


मंगलवार, 15 जून 2021

छल

बहुत अनुराग था 

हां प्यार था 

दिल भी कहता है 

वह यार था;

पर प्रसिद्धि की थी भूखी 

रिश्तों से विराग था 

पर अंदाज उसके 

जिसमें नव पराग था; 

जीवन की प्रत्यांचाएं 

लक्ष्य से अनुराग था 

बहुत पाना चर्चित हो जाना 

यह भी एक शबाब था; 

प्रियतम से अपने कामा 

फिर पूर्णविराम ताब था 

कई लोगों से करती गुफ्तगू 

उसके प्यार का यही आब था।


धीरेन्द्र सिंह









 

सोमवार, 14 जून 2021

दूजे से बतियाती है

 पहला न करे फोन जुगत यह लगाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है


सोशल मीडिया पर साहित्य प्रेम गांव

कुछ न कुछ लिखते सब इसके छांव

लिख उन्मुक्त चाह भरमाती बुलाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है


घर में करे सवाल तो कहें साहित्य चर्चा

पैसे लगा प्रकाशित पुस्तकों पर चर्चा

कभी मैसेंजर, कभी व्हाट्सएप चलाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है


कर देती अनब्लॉक पहले प्रेमी से बतियाए

रिश्तेदार का कॉल था झूठ पालना झुलाए

अपने चटखिले पोस्ट उससे हाइड कर जाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है


फिर गोष्ठियों का जुगाड से हो आयोजन

कभी चाय के आगे न खाने का आयोजन

नयन अठखेलियों में छुवन खिलखिलाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है।


धीरेन्द्र सिंह