जनम,ज़िंदगी,जुगत चतुराई 
लाग,लपट,लगन बहुराई
आस अनेकों प्यास नयी है
कैसे निभेगी कहो रघुराई 
चाकी बंद न होने पाये 
निखर-निखर अभिलाषा धाये
मन है भ्रमित मति बौराई 
श्वांस-श्वांस पसरी है दुहाई 
सत्य खुरदुरा सख़्त बहुत है 
समझ ना आए पीर पराई 
अपने दर्द सहेजें कैसे 
अब तक हमने खूब निभाई 
प्रीत टीस कर चल देती है 
रीति की राहों में सौदाई 
मीत,मिलन,मादक मन यह 
दीप कहाँ और कहाँ सलाई।    
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.