गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025

कुछ नहीं आता

व्यक्ति में बौद्धिक सक्रियता सोचे विद्व ज्ञाता
दिवाली हेतु सफाई में सुने कुछ नहीं आता

हर घर दीप पर्व नाते घर में करे साफ-सफाई
मैंने भी सोचा सहयोग देकर पाऊं खूब बड़ाई
रसोई को खाली करने में श्रमदान का इरादा
सहायिका की मदत की सुना कुछ नहीं आता

कांच के बर्तन घेरे रख दिए थे कई ढंग बर्तन
चादर बिछी थी खिसकी शोर संग किए नर्तन
कुछ कांच टूटा सुना ऐसा सहयोग किसे भाता
सहायिका की मदत की सुना कुछ नहीं आता

पेशेवर सफाई कर्मी लेकर घर पहुंचे संग समान
सीढ़ी अलावा चढ़ने को कुछ मांगे ऊंचा स्थान
झट रिवॉल्विंग चेयर दे बोला सब इससे हो जाता
पेशेवर की थी अस्वीकृति लगा कुछ नहीं आता

शाम के सात बजे दो घंटे से सिर्फ किचन सफाई
तीन बाथरूम अभी पड़े हैं समय दे रहा दुहाई
उत्साह में दर्शाया रसोई व्यवस्थित की जिज्ञासा
कौन सामान कहां रहेगा बोले कुछ नहीं आता

क्लीनिंग पेशेवर लगे बैठा सोचा संगी कविता
घर को रखे व्यवस्थित मात्र गृहिणी की रचिता
सात बजे रहे हैं लगे रसोई में दो सफाई ज्ञाता
इस दीपावली ने दिया संकेत कुछ नहीं आता।

धीरेन्द्र सिंह
16.10.2025
07.03
#स्वरचित
#Poetrycommunity
#kavysahity
#poemoftheday
#poetrylover
#public

सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

विकल्पविकल्प

विकल्प जब अनेक हों
संकल्प प्रखर सम्मान रहे
रचनाएं तो मिले बहुत
लाईक, टिप्पणी मांग रहे


आहत

आहत होने के लिए
कोई व्यक्ति
नहीं चाहिए
प्रायः व्यक्ति
होता है आहत
स्वयं से,
कैसे?

संवेदनाओं के संस्कार
परंपराओं के द्वार
बना लेती हैं
अपना कार्ड आधार
संस्कारों का
शिक्षा का, दीक्षा का
और लगती हैं देखने
दृष्टि समाज को
अपने 
संस्कार आधार कार्ड से,

दूसरे का दर्द,
परिस्थिति
न समझ पाना
और हो जाना
नाराज
कुपित
दुखी
होकर आहत,
कभी सोचा
सामने व्यक्ति को
मिली क्या राहत ?
अपनी ही सोचना,
है न!

धीरेन्द्र सिंह
14.10.2025
11.36


रविवार, 12 अक्टूबर 2025

व्यक्तिवादी

व्यक्तिवाचक रचना से बिदक जाते हैं
साहित्य पाठक भी क्यों ठुमक जाते है 

आदर्शवादिता लगे उनकी धरोहर है
कैसे लेखन ऐसे में ना दहक पाते है 

प्रथम पुरुष में लिखना क्या गलत है
बेमतलब का मतलब लहक जाते हैं

चरित्र चाल कर रखने की चीज कहां
जो लिखते हैं चालकर लिख पाते हैं

एक दीवार तक लेखन को जोडनेवालों
जो लिखते हैं उसी भाव महक जाते है 

प्रणय रचना को प्रस्ताव समझना कैसा
क्यों रचना में व्यक्तिवादी झलक पाते हैं

भाव दबाकर लिखें आपातकाल है क्या
साहित्य रचते जो यथार्थ कुहुक जाते हैं।

धीरेन्द्र सिंह
13.10.2025
12.23

शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

एक कल्पना

में यदि हूँ कहीं
ढूंढो यहीं कहीं
कह रहा इसलिए
सुन लिया बतकही

मत पूछो मेरा पता
व्योम धरा है ज़मीं
यह स्व उन्माद नहीं
होती सब में कमी

रात्रि प्रहर में सोचना
चाहतों की है नमी
सोचता मन आपको
दिखती नहीं कभी।

धीरेन्द्र सिंह
11.10.202
22.02

स्तब्धता

 प्रेम पगता है मगन मन मेरे
और तुम पढ़ रही मेरी कविता
शब्द में भावनाओं का मंथन
कब समझोगी हो तुम ही रचिता

तुम्हारे स्पंदनों में हूँ मन साधक
और तुम कल्पनाओं की संचिता
एक परिचित नाम ही बन सका
कभी क्या लगता हो तुम वंचिता

प्रणय के पालने में रहा झूल हृदय
तुम्हारी आभा की पाकर दिव्यता
पहल अब और कितना हो कैसे
आओ न मिल रचें कई भव्यता

नई अनुभूतियों पर धुन बने नई
राग तो तुम हो करो आलापबद्धता
तुम हवा सी गुजर जाती हो छूकर
बाद देखी हो क्या मेरी स्तब्धता।

धीरेन्द्र सिंह
11.10.2025
20.41
#स्वरचित
#Poetrycommunity
#kavysahity
#poemoftheday
#poetrylover



तटस्थ

तटस्थ हो घनत्व को सदस्य दीजिए
निजता है पल्लवित राजस्व दीजिए
गुटबंदियां चापलूसी में हैं सन रही
कितने छोड़ रहे साथ महत्व दीजिए

अपने में दम तो बातों का क्या वहम
कारवां में सब एक यह कृतित्व कीजिए
रिश्तेदारी की खुमारी है तब दुश्वारी
जब प्रियजन समूह हैं व्यक्तित्व दीजिए

प्लास्टर लगे उखड़ने किसका प्रभाव है
किसका प्रभुत्व है यह तत्व उलीचिए
कुछ ईंटें सरकी हैं बात हद में ही है
दीवारों की खनक रहे शुभत्व कीजिए

कुछ टूट रहा है कुछ छूट रहा है
क्या कुछ लूट रहा है संयुक्त कीजिए
निर्भीकता से बोलता साहित्य हमेशा
मर्जी आपकी भले अलिप्त कीजिए।

धीरेन्द्र सिंह
10.11.2025
17.16