सोमवार, 12 मई 2025

जुड़ाव कहां

 तिथियों में कथ्य बंट गए

सत्य भी पथ्य में अंट गए

पहले सा ना रहा दिखावा भी

रिश्ते कैसे-कैसे सिमट गए


अब मोबाइल की है धड़कन

जब बजे उछल पड़े तड़पन

दूर-दूर से ही शब्द लिपट गए

रिसते कैसे-कैसे सिसक गए


छन्न से क्षद्म यह बनाती है

जिंदगी जैसे की आंधी-पानी है

बहते-बहते बेखबर अटक गए

किससे कहें कौन कहां भटक गए


पारिवारिक उत्सव में जुड़ाव कहां

फर्ज अदायगी है दिल उड़ाव कहां

जिंदगी चाही जिंदगी में लचक गए

हो रही भागमभाग ले लपक गए।


धीरेन्द्र सिंह

12.05.2025

09.57



रविवार, 11 मई 2025

शब्द

 शब्द आतिथ्य में भावनाओं का गबन

आप जैसा ही शब्द करता है मनन


क्या कहा आपने लगा कि आप कह गईं

आपको सुनने की कोशिश कहीं बहल गई

कभी समझा ना कभी समझा लगे कथन

आप जैसा ही शब्द करता है मनन


भावनाएं मांगती हैं शब्द से चुना खास ही

शब्द कहता जियो सबकुछ नहीं प्यास ही

शब्द चुपचाप रहें भावनाओं का हो जतन

आप जैसा ही शब्द करता है मनन


हर नए व्यक्तित्व की प्रोफाइल से जांच

जैसे कोरे शब्द में ढूंढना भाव की आंच

तपिश अनुभूति की ढूंढ रही कहां अगन

आप जैसा ही शब्द करता है मनन।


धीरेन्द्र सिंह

11.05.2025

21.13



शनिवार, 10 मई 2025

आप

 आप छूती हैं गुदगुदाती हैं

एक हवा सी गुजर जाती है

लाख कोशिशें समझ न पाईं

आप क्या-क्या बुदबुदाती हैं


एक झोंका सुगंधित छू भागा

ऐसी शरारत कुहुक जाती है

मन जाता बहक अक्सर ही

कविता मेरी यूं सुगबुगाती है


पंखुड़ियां सजी मेरी हथेलियां

तलवे आपके खिल सहलाती हैं

यूं लगे गुजर रही हैं बदलियां

गजब हैं आप चुप खिलखिलाती हैं


मेरी अनुभूतियां हो रहीं गर्वित

आपकीं रीतियां बलखाती हैं

एक लौ राह में जलाइए तो

आलोकित हो आमादा बाती है।


धीरेन्द्र सिंह

11.05.20२5

09.09



शुक्रवार, 9 मई 2025

संपर्क

 जो भी आता मुझसे मिलता

औपचारिकता संग छुपे दिल का

इसमें उनकी क्या कोई गलती

सांसारिकता अब चुके दिन सा


जीवन में है मिला जो धोखा

लोग हैं सोचते संपर्क साहिल सा

लहरों सा छूकर तट लौट जाना

संबंध अब तो है बस हासिल सा


तर्क और विवेक के अनुभव कहें

असत्य सब सत्य मात्र काबिल का

हर संपर्क तौलता निज लाभ हानि

जग यही सोचता कर्म कातिल सा।


धीरेन्द्र सिंह

09.05.2025

19.05



गुरुवार, 8 मई 2025

माटी

 युद्ध है शस्त्र धरो योद्धा

देश हमारा माटी है श्रद्धा


बम गूंज भरे टेलीविजन

ब्लैक आउट उनका जीवन

जज़्बा उनका ढूंढ रहा कंधा

देश हमारा माटी है श्रद्धा


आतंकी पालता पोसता देश

अब बता क्या बचा है शेष

शहर-शहर टूटा झुका मत्था

देश हमारा माटी है श्रद्धा


भारतीय सेना जीत लिए पैना

लक्ष्य लहका दें सत्य यह है ना

टूटा वह देश हो तिहाई अद्धा

देश हमारा माटी है श्रद्धा।


धीरेन्द्र सिंह

09.05.2025

07.46



बुधवार, 7 मई 2025

योद्धा

 संघर्ष ही है जीवन कहे मानव इतिहास

धरा कहे व्योम से कर इसपर विश्वास


हर सांस जीवन युद्ध है और बुद्ध हैं

संघर्ष से जो गुजरे वही जीव शुद्ध हैं

बौद्धिकता ही नहीं सामाजिकता सायास

व्यक्ति हौसले को कहे लक्ष्य कर तलाश


नित अंग संचालन स्वास्थ्य का आधार

नित्य अप्रासंगिक त्यजन सुखद संसार

बाधाएं प्रगति की करें दुखद जो सायास

हर वेदना कहे निर्मूलन शीघ्र हो काश


हर व्यक्ति योद्धा की तरह सौष्ठव रहे

जब जीत जाता कहता चलो उत्सव करें

हर व्यक्ति का अस्त्र-शस्त्र करे उल्लास

योद्धा जो सुप्त व्यक्ति में हो कहां उजास।


धीरेन्द्र सिंह

07.05.2025

06.01



मंगलवार, 6 मई 2025

पानी न दी

 (नई दिल्ली, एनसीआर में घटित एक सत्य घटना पर आधारित रचना जहां कुछ पुरुषों ने मिलकर एक उभरती सशक्त रचनाकार को ऐसा भरमाया की उसने लेखन बंद कर दिया और सर्जनात्मक रूप से बिखर गई जिसका खेद है।)


दरवाजे से लौटा दी मांगा पानी न दी

ऐसा भी करती हैं साहित्य सेवी महिला

दोष इतना सा था कि बहकने से रोका

अब मौन है अज्ञात है जो थी पहिला


एक उड़ीसा की लेखिका पूजती रहती

नासमझ वह क्या जानें उत्तर का किला

पंजीकृत संस्था है निष्क्रिय, प्रकाशक शांत

गलियारों में साहित्य का रहा मौन खिलखिला


कहता था मर जाओगी भ्रमित जाल में

झूठी प्रशंसा, उपहारों ने दिया मन हिला

अब सर्वेश्वर की कविता यूट्यूब पर पढ़ें

खुद की काव्य पुस्तक कर रही है गिला


हर उभरती साहित्यिक महिला को मशवरा

लेखन रहे सतत अन्य गौण सिलसिला

एक प्रतिभाशाली लेखिका, मौन हो गयी

दर्द सह सका न अब तो, दिया चिल्ला।


धीरेन्द्र सिंह

02.05.20२5

17.17