शब्द लगाते भावनाओं की प्रातः फेरियां
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां
प्रतिदिन देह बिछौना का हो मीठा संवाद
कोई करवट रहे बदलता कोई चाह निनाद
यही बिछौना स्वप्न दिखाए मीठी लोरियां
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां
किसको बांधे चिपकें किससे शब्द बोध
शब्द भाव बीच निरंतर रहता है शोध
प्रेमिका सी चंचलता भावना की नगरिया
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां
प्रेमी सा ठगा शब्द चंचल प्रेमिका भाव
शब्द हांफता बोल उठा पूरा कैसे निभाव
अवसर देख स्पर्श उभरा छुवन की डोरियां
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां।
धीरेन्द्र सिंह
24.06.20२4
15.17