बुधवार, 13 सितंबर 2023

हिंदी दिवस

 बोली में घुली मिश्री लेखन में अंग्रेजी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी


संविधान से लिपटकर बन गई राजभाषा

कार्यालयों में क्यों यह अक्सर लगे तमाशा

विभाग गठित कर, देती है रोजी-रोटी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी


चापलूस अधिकतर सम्मेलन की क्यारी

चाटुकारिता ही है अब हिंदी की लाचारी

वर्षों से हिंदी दिवस पर हिंदी सतेजी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी


मोबाइल, कंप्यूटर पर लिपि रोमन दहाड़

देवनागरी में टाइपिंग सबको लगे पहाड़

लेखन में देवनागरी लिपि सतत निस्तेजी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी


जिह्वा पर शब्द हिंदी राज्य शब्द मिलाएं

जब बोलें ठीक तो, शुद्ध हिंदी कहलाएं

लिपि देवनागरी प्रयोग क्यों भाषा भदेसी

हिंदी दिवस यही देवनागरी की तेजी ?


धीरेन्द्र सिंह

13.09.2023

कुहुक

 मन की कुहुक निगाहों से हो ध्वनित

अभिव्यक्तियों के यूं नज़र हो गईं

देखा भी न देखा आंखों की नमी

जिंदगी अघोषित एक ग़दर हो गयी


कुहुक है नयन का अनसुना सा ताल

ध्वनि हर डगर यूं बसर कर गई

पत्ता-पत्ता लगा झूमने पा नई ताल

डालियों पर नज़र जो असर कर गयी


बिन बोले बिन जाने लगते अनजाने

अपनेपन की ऐसी ध्वजा फहर गई

यूं चलते कदम लगने लगे हों नज़म

गंगा कदमों को छू जिंदगी तर गयी


कुहुक निगाह है अथाह ले गहनतम चाह

छाहँ वह राहगीरों की दर हो गई

सब पुजारी ले पाठ उमड़ने लगे

नयनों की बांसुरी जो अधर हो गयी।


धीरेन्द्र सिंह

13.09.2023

12.2


सोमवार, 11 सितंबर 2023

बदलियां

 हवा भी चल रही बदलियों को गुमान है

भींगा देंगी अबकी यही तो अभियान है


बदलियां घिर रहीं, गरज रहीं, बरस रहीं

कितनी प्यासी हैं भिगाने को तरस रहीं

मन की बदलियों का मेघ को न ज्ञान है

भींगा देंगी अबकी यही तो अभियान है


घिरी बदलियां हों और छूती हुई सर्द हवा

मीठी सिहरन में हवाओं सा ना हमनवा

प्रवाह मंद जिंदगी का अभिनव तान है

भींगा देंगी अबकी यही तो अभियान है


भींगना मन के सावन का मनमौज है

बदलियों का इस कारण ही फौज है

हर एक चाहत का निज अभिज्ञान है

भींगा देंगी अबकी यही तो अभियान है।


धीरेन्द्र सिंह

12.09.2023

06.24


चहकती भावनाएं


चहकती भावनाएं अपेक्षाओं की अलगनी

खाली पल में अक्सर इनकी तनातनी

 

चहक को रिझाती अपेक्षा की भावना

अलगनी खूब झुलाती नमी भर कामना

नयन के खारेपन में कुछ सुनासुनी

खाली पल में अक्सर इनकी तनातनी

 

महक जाता हृदय क्या यह आवारगी

प्रणय से दूर समझें क्या बेचारगी

कोई यूं हृदय में बसी गुनगुनी

खाली पल में अक्सर इनकी तनातनी

 

हर द्वार पर कंपित हैं वंदनवार

एक पुकार में अदृश्यता है शुमार
संपूर्णता अपूर्णता मैं है ठनाठनी

खाली पल में अक्सर इनकी तनातनी।

 

धीरेन्द्र सिंह

11.09.2023

14.00

शनिवार, 9 सितंबर 2023

भारत मंडपम-भारतीय भाषाएं

 भाषा तो हिंदी लिपि कहां है

रोमन में लिपटता सारा जहां है


भाषिनी की सगर्व है प्रस्तुति

स्क्रीन पर रोमन की उपस्थिति

जी 20 में देवनागरी कहां है

रोमन में लिपटता सारा जहां है


भाषांतर की यांत्रिकी हैं सुविधाएं

श्रवण में संकुचित सभी दिशाएं

भारतीय लिपियों की चर्चा कहां है

रोमन में लिपटता सारा जहां है


भारत मंडपम एक अभिमान है

भव्यता का अभिनव गुमान है

भाषाएं भारतीय विद्यमान कहां है

रोमन में लिपटता सारा जहां है


भारत मंडपम में भारत गान है

हर राज्य जी 20 का गुणगान है

चकाचोंध में कौन चतुर सुजान है

रोमन में लिपटता सारा जहां है।


धीरेन्द्र सिंह

09.09.2023

10.10

सोमवार, 4 सितंबर 2023

बदन

 शब्दों में मोड़कर भाव छुपाए

किस तरंग की उमंग लीजिए

प्रेम बदन में ही ढूंढ रहे

ओ विहंग एक प्रबंध कीजिए


तन के धरातल भुरभुरे फिसलते

और कितना, अब रुक लीजिए

मन को देखा न पाया कभी

गौर तन पर कितना कीजिए


एक से बात दूजा प्रतीक्षा में

तीसरे पर न पांसा फेंकिए

तन के आगे न जाने तराने

मिसरे मन के भी तो देखिए


मिलते हैं अक्सर ऐसे सुख़नवर

स्वर हृदय का भी जतन कीजिए

लीजिए बुरा मान ब्लॉक कर दिए

देह से देश का क्यों हवन कीजिए।


धीरेन्द्र सिंह

05.09.2023

05.25


शनिवार, 26 अगस्त 2023

स्त्री

 आप दिव्यता की एकमात्र कड़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी


आरम्भ से जीत की रणदुदुम्भी

जीवन की है अभिनव जलकुंभी

इनका सानिध्य उपलब्धियां बड़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी


आत्मा की ताज में वह बलवती

शैशव से वृद्धावस्था की सुमति

वह कौन जिसमें स्त्री न कड़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी


मातृत्व का विशद गहन दुलार

प्रेयसी का सुगंधित मृदु अभिसार

जीवन यात्रा में पुष्प सी पड़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी


ममता की समता सौम्य सुगंधित

मनवा की नम्रता कौन निबंधित

हृदय में यह दिव्यता है मढ़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी।


धीरेन्द्र सिंह

26.08.2023

22.54