बुधवार, 12 अक्टूबर 2022
करवा चौथ
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022
अंतरंग
आपकी गतिशीलता गति करे प्रदान
आपकी प्रगतिशीलता निर्मित करे अभिमान
आप साथी आप संगी आप ही अंतरंग हैं
आप ही गोधूलि मेरी आप ही तो बिहान
आप से निबद्ध हूं निमग्न आप में प्रिए
आप की सहनशीलता में घुला सम्मान
आप मेरे आलोचक, समीक्षक हैं शिक्षक
आपकी कुशलता संजोए संचलन कमान
हृदय ही सर्वस्व है वर्चस्व उसका ही रहे
हृदय की आलोड़ना में प्रीत का बसे गुमान
कौन उलझे सांसारिक रिश्तों की क्रम ताली में
हृदय जिसे अपनाएं प्रियतम उससे ही जहान
मानव निहित अति शक्तियां अप्रयोज्य पड़ीं
इन शक्तियों में सम्मिलित कई नव वितान
भाग्य ही भवसागर है कर्म की कई कश्तियां
कौन किसका कब बने इसका न अनुमान।
धीरेन्द्र सिंह
शनिवार, 10 सितंबर 2022
मन अधीर है
शब्दों की गगरी में भावों के खीर हैं
ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है
एक अधर खीर का स्वाद बेजोड़ है
मन में बसा उसका होता न तोड़ है
चाहतें चटखती चढ़ रही प्राचीर हैं
ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है
दुनिया का जमघट अपना पनघट है
प्रीत की बयार मदहोशी तेरी लट है
जमाने के तरीकों में अपनी लकीर है
ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है
शब्द गगरियों की आपसी टकराहट
खीर भी मिल दिखलाती घबराहट
भावनाएं दूर कहीं अनजानी तीर हैं
ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है।
धीरेन्द्र सिंह
बुधवार, 24 अगस्त 2022
पपड़ियां
पर्वतों के पत्थरों पर पड़ गयी पपड़ियां
एक मुद्दत से यहां कोई हवा न बही
व्योम में सूर्य की तपिश थी धरती फाड़
चांदनी पूर्णिमा में भी ना नभ में रही
क्या प्रकृति में भी होता षड्यंत्र कहीं
अर्चनाएं जीवन की पहाड़ी नदी बही
किस कदर जी लेती है इंसानियत भी
कल्पनाओं में चाह स्वप्न बुनती रही
अब न ढूंढो हरीतिमा पर्वत शिखरों पर
कामनाएं प्रकृति अवलम्बित उल्टी बही
एक हवा बन बवंडर सी चल रही है यहां
मगरूरियत विश्वास में राग वही धुनती रही।
धीरेन्द्र सिंह
सन्नाटा
सन्नाटे में नई रोशनी जग रही
उठिए न देखिए सांखल बज रही
मत सोचिए हवा की है मस्तियाँ
शायद कहीं करीब हो बस्तियां
एकाकी आत्मिक सुंदरता सज रही
उठिए न देखिए सांखल बज रही
हृदय का हृदय से हार्दिक मिलान है
दो हृदय नाम वैसे तो एक जान हैं
जीवन झंझावात में त्रुटियां लरज रहीं
उठिए न देखिए सांखल बज रही।
धीरेन्द्र सिंह