सन्नाटे में नई रोशनी जग रही
उठिए न देखिए सांखल बज रही
मत सोचिए हवा की है मस्तियाँ
शायद कहीं करीब हो बस्तियां
एकाकी आत्मिक सुंदरता सज रही
उठिए न देखिए सांखल बज रही
हृदय का हृदय से हार्दिक मिलान है
दो हृदय नाम वैसे तो एक जान हैं
जीवन झंझावात में त्रुटियां लरज रहीं
उठिए न देखिए सांखल बज रही।
धीरेन्द्र सिंह
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