शब्द की टहनियों में प्यास है
भाव की वृष्टि भी उदास है
बिखर रही है यह जुगलन्दी
लिखिए आपके जो पास है
चंद नामों से बचिए हैं मशहूर
चिंतन आपका भी खास है
स्वतंत्र लिख देना है बड़ी बात
कई प्रभावों में बंधे हाँथ है
लिख रहे छप रहे, जप रहे
एक परिवर्तन हिंदी तलाश है
क्रांति हिंदी जगत में अपेक्षित
करें प्रकाशित स्व, हिंदी हताश है।
धीरेन्द्र सिंह
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