सोमवार, 14 अगस्त 2017

अब न तुम पर नया गीत लिखूंगा
सिद्धांत के अनुसार न मीत लिखूंगा

तुम एक नई डगर पर चलने लगी
जब भी लिखूंगा सीख प्रीत लिखूंगा

समर्पण नहीं टूटता न झुकता कभी
खामोश हो रहा उनकी जीत लिखूंगा

कृष्ण जन्माष्टमी को कान्हा प्रीत मिली
उनकी इस जीत की प्रतीत लिखूंगा

वो चाहती हैं विलुप्त हो जाऊं पटल से
शटल नई ही कोई गति रीत लिखूंगा।
ऐसा लगे संबंधों में ऋण हो गए
राधा मीरा गोपी बिना कृष्ण हो गए

पूतना पग पग पर रह रह लुभाए
सम्मोहित कर प्राण हर ले जाए
वासुदेव कब के तो उऋण हो गए
गंगा में लहरों के ताल क्षीण हो गए

ऐसा लगे संबंधों में...

बांसुरी से अब प्यार का गान लुभाए
बांसुरी के अन्य पक्ष देते हैं भुलाय
सुमेरु पर्वत के तले सब प्राण हो गए
कृष्ण के स्पर्श से विशाल तृण हो गए

ऐसे लगे संबंधों में...

कृष्ण की विशालता सब लघु बनाए
कभी कोमल रूप ले भक्ति घुलाए
शक्ति शौर्य भक्ति आसक्ति त्राण हो गए
कृष्ण जन्माष्टमी में भक्त प्रमाण हो गए

ऐसे लगे संबंधों में...

कान्हा के कई रूप हर मन को लुभाए
कान्हा के शौर्य रूप लगे छुप छुप जाए
महाभारत में कृष्ण भक्ति दुख बाण हो गए
नई पीढ़ी को मिले ज्ञान तो युग त्राण हो गए

ऐसा लगे संबंधों में ऋण हो गए
राधा मीरा गोपी बिना कृष्ण हो गए।
कृष्ण तृण तृण में
तृण तृण में रण है
कंस कारावास दंश
कृष्णावतार प्रण है

जन्म कब रहा आसान
घमासान कई गण है
जन्म होते मॉ से ज़ुदा
यह अनूठा ग्रहण है

जन्म ही धन्य है
अन्य सब कृपण है
प्रफुल्लित जागृत सहज
सशक्त कण कण है

कृष्ण जन्माष्टमी सुखद
अनहद सम्मिश्रण है
पालने में ही युद्ध क्षेत्र
हर जीवन कृष्ण कृष्ण है ।
फ़्रेंड रिक्वेस्ट कभी भी न भाया
कई रिक्वेस्ट लिए प्रतीक्षा है
जो भी लपक पड़े दोस्त बना लें
भीड़ बढ़ाना ही क्या सदिच्छा है

200-300 मित्रों की लंबी सूची
20-30 से भी न वार्ता समीक्षा है
एक शौक है या कि प्रदर्शन झूठा
फ़्रेंड रिक्वेस्ट भी प्रभु इच्छा है

आप कैसे है, शुभ रात्रि प्रभात ही
इनबॉक्स में भावों की भिक्षा है
शायद 1 या 2 करें खुल कर बातें
शेष फ़्रेंड मात्र खयाली समीक्षा हैं

ऑनलाइन में भी दिखावे की ज़िंदगी
भाव बंदगी की नहीं कहीं दीक्षा है
बांध एक बना दिया अटके फ़्रेंड रिक्वेस्ट
प्रवाह तरल सरल हो मिली शिक्षा है।
.छुट्टियों का दिन अजीब होता है
दिल तो दिल हर करीब होता है

पत्नी कहे मोबाइल से न चिपको
प्रिये बोले न साथ नसीब होता है

तुला राशि है पर संतुलन न हो
असंतुलन में ही अदीब होता है

यह छुट्टियां सौतन सी रहीं सता
मिज़ाज़ खौफ के नसीब होता है

प्यार पर कब हुआ नियंत्रण कभी
ढूंढ रहा मन कोई तरकीब होता है।
.धीमी धीमी प्यार की आंच
मुझको कर ली पूरा बांच

एक समर्पित रागिनी मिली
दुनियादारी की धतूरा साँच

आक्रामक शेरनी सी हुंकारे
चटख गए सब नूरा कांच

मुझसे कोई ना बात करे यूं
प्रीत की न दे कोरा  नाच

ओ प्रिये सुन तो रही होगी
तुम मेरी हो सुनहरा उवाच।
आसमां छूट रहा कसी मुट्ठी से
लड़ने लगी ज़िन्दगी चुटकी से

कितनी तन्हाईयों ने अब आ घेरा
डेरा और डरे उनकी घुड़की से

मान लेगा मन जो भी कहें वह
कहां फिर मुक्ति मनकी कुड़की से

प्यार समर्पण का दर्पण रहा हमेशा
तर्पण प्यार का प्रिये की खिड़की से।