मन को ना छुओ नहीं मैं बुद्ध
छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध
प्रीत प्रणय है सदियों की बीमारी
रीत नीति है वादियों की ऋतु मारी
मुझसे जुड़कर प्रवाह करो न अवरुद्ध
छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध
आत्म मंथन का हूँ मैं एक पुजारी
पारदर्शी सत्यता इच्छा पूर्ण सारी
सरल शांत मन ना कहीं अवरुद्ध
छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध
उसे चिढ़ाता था कह रानी दिखलाओ
वह कहती थी कर्मठता तो दिखलाओ
वह थी रानी राजा सा मैं निबद्ध
छुओगे तो हो जाऊंगा में अशुद्ध
व्यक्तित्व मेरा हवन सुगंधित ज्वाला
कृतित्व को उसने टोह-टोह रच डाला
उससा कोई कहीं नहीं थी बड़ी प्रबुद्ध
छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध।
धीरेन्द्र सिंह
29.01.2024
20.43
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