यूं पंख समेटे कब तक जीना है
उड़िए कि मोहब्बत का महीना है
पलक सींच लीजिए अकुलाहट भर
उड़ चलिए खूबसूरत रंगीन हैं पर
प्रकृति ने सौंदर्य हर ओर बीना
है,
उड़िए कि मोहब्बत का महीना है
ग़ज़ल के हुस्न पर आपकी अंगड़ाई
वसंत बन महंत करने को चौधराई
भारतीय पाश्चात्य संयुक्त नगीना
है
उड़िए कि मोहब्बत का महीना है
हृदय के भाव नयन पुतली में छाए
लगन के तार मगन तितली सा भाए
समझ लें आप किसीका दागिना हैं
उड़िए कि मोहब्बत का महीना हैं
हुआ क्या क्षद्म से उनका साथ
छूटा है
प्रसंग अब भी यादों में संवाद
रूठा है
बहारें अब भी झूमें वह तो हठी
ना है
उड़िए कि मोहब्बत का महीना है।
धीरेन्द्र सिंह
02.02.2024
14.21
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