शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

मोहब्बत का महीना

 

यूं पंख समेटे कब तक जीना है

उड़िए कि मोहब्बत का महीना है

 

पलक सींच लीजिए अकुलाहट भर

उड़ चलिए खूबसूरत रंगीन हैं पर

प्रकृति ने सौंदर्य हर ओर बीना है,

उड़िए कि मोहब्बत का महीना है

 

ग़ज़ल के हुस्न पर आपकी अंगड़ाई

वसंत बन महंत करने को चौधराई

भारतीय पाश्चात्य संयुक्त नगीना है

उड़िए कि मोहब्बत का महीना है

 

हृदय के भाव नयन पुतली में छाए

लगन के तार मगन तितली सा भाए

समझ लें आप किसीका दागिना हैं

उड़िए कि मोहब्बत का महीना हैं

 


हुआ क्या क्षद्म से उनका साथ छूटा है

प्रसंग अब भी यादों में संवाद रूठा है

बहारें अब भी झूमें वह तो हठी ना है

उड़िए कि मोहब्बत का महीना है।

 

धीरेन्द्र सिंह

02.02.2024

14.21

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