तुम मुझे हवा की नमी में कहीं मिलती हो
तब कहीं फूल सी हृदय खिली मिलती हो
एक धर्म जिसका एक सा कर्म लिए प्रसार
एक लक्ष्य सबका एक सा प्यार लिए संसार
भाव मिलन के अनंत वितान में उड़ती हो
तब कहीं फूल सी हृदय खिली मिलती हो
मंद हवा शीतलता भरकर गली- गली में दौड़े
आनंद छुवा कृत्रिमता हरकर हिली-मिली कोड़े
परिवेश पहनकर मौसम बन उन्मुक्त विचरित हो
तब कहीं फूल सी हृदय खिली मिलती हो
जब छूना छू लेती हो धरा गगन के रूप
मन अंधियारा जब छाए याद तुम्हारी धूप
कुनकुनी ऊष्मा उल्लसित छत द्वार सजती हो
तब कहीं फूल सी हृदय खिली मिलती हो।
धीरेन्द्र सिंह
26.12.2023
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें