मुझे तुम सबल से सजल कर गयी
सुनी जो नई वह ग़ज़ल कर गयी
कहा कब यह मन हो तुम गगन
कहा कब यह जन हो तुम सपन
सघन हो लगन अब तरल कर Each
सुनी जो नई वह ग़ज़ल कर गयी
स्पंदित सुरभित कुसुमित प्रचुर
भाव
वंदित तरंगित दृगबन्दी सकल निभाव
मंदित मंथर मंतर सफल कर गयी
सुनी जो नई वह ग़ज़ल कर गयी
मुखड़ा संवरकर दे रहा नया प्रलोभन
मिसरा पिघलकर दे रहा नया संबोधन
अनुभूतियां सपन भर महल कर गयी
सुनी जो नई वह ग़ज़ल कर गयी।
धीरेन्द्र सिंह
16.12.2023
16.45
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