प्रीति अधर अकुलाए, रह-रह बुलाए
प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए
उसकी बातें मन के छाते छांव दिए
उसकी बाहें तन को बांधे भाव दिए
घर से घर कर बातें, तर-तर बिहाए
प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए
कल के प्रियतम सजन मगन मधुर
बोले सास, ननद का स्वभाव
निठुर
केशों को सहलाते बोले, गहि-गहि कुम्हलाएं
प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए
सास-ननद का ताना
बाना रोज निभाना
टूटे ना परिवार, नारी सब सहते
जाना
सैयां से क्या बोले अब, ठहि-ठहि बताए
प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए
प्यार सजन का हो गया जैसे सूखा
फूल
बात-बात में मिले
नए झगड़े का तूल
मर्यादा में सहनशक्ति, बार-बार झुकाए
प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए
साजन अब ऐसे लगें जैसे हों छाजन
पैंतालीस बरस है बीता इस घर-आंगन
सहते रहना गलत, मन कह-कह मुस्काए
प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए
प्रेमी, सजन फिर छाजन
प्यार का जतन
घर-आंगन सब लोग
में रही हमेशा मगन
मिला अंत में क्या जीवन, सहि-सहि गंवाए
प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए।
धीरेन्द्र सिंह
15.12.2023
10.07
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