गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

व्यथा कथा

 

प्रीति अधर अकुलाए, रह-रह बुलाए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

उसकी बातें मन के छाते छांव दिए

उसकी बाहें तन को बांधे भाव दिए

घर से घर कर बातें, तर-तर बिहाए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

कल के प्रियतम सजन मगन मधुर

बोले सास, ननद का स्वभाव निठुर

केशों को सहलाते बोले, गहि-गहि कुम्हलाएं

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

सास-ननद का ताना बाना रोज निभाना

टूटे ना परिवार, नारी सब सहते जाना

सैयां से क्या बोले अब, ठहि-ठहि बताए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

प्यार सजन का हो गया जैसे सूखा फूल

बात-बात में मिले नए झगड़े का तूल

मर्यादा में सहनशक्ति, बार-बार झुकाए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

साजन अब ऐसे लगें जैसे हों छाजन

पैंतालीस बरस है बीता इस घर-आंगन

सहते रहना गलत, मन कह-कह मुस्काए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

प्रेमी, सजन फिर छाजन प्यार का जतन

घर-आंगन सब लोग में रही हमेशा मगन

मिला अंत में क्या जीवन, सहि-सहि गंवाए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए।

 

धीरेन्द्र सिंह


15.12.2023

10.07

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