माघ सीवान में कटकटाए रतिया
रजाई ढुकाय हड़बड़ाए तोरी बतियां
खड़ी फसल देख नय-नय मुस्काएं
सरर-सरर हवा देह को लहकाएं
ओस-ओस ओढ़ कांपे हैं पतियां
रजाई ढुकाय हड़बड़ाए तोरी बतियां
चंदा सितारे निस संगी मनद्वारे
किसानी का लहजा मचान संवारे
लालटेन सी गरमाहट बसे छतिया
रजाई ढुकाय हड़बड़ाए तोरी बतियां
खेत हुई हलचल सियार हैं पधारे
खट-खट लाठी हौ-हौ चिंघाड़े
जैसे पुकारे हिय तड़पत छतिया
रजाई ढुकाय हड़बड़ाए तोरी बतियां।
धीरेन्द्र सिंह
12.12.2023
21.27
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