बोलो प्रिये कहाँ से इतनी प्रीत तुम्हें मिल पाई है
हर चहरे पर लगा मुखौटा मौलिकता की दुहाई है
सूखे सियाह चहरे पर चिपकी उदास सी मुस्कानें
सफल, संपन्न बन जाने को हैं हुए सब दीवाने
प्यार हाशिए पर बैठा नित होती उसकी रंगाई है
भावनाएं रहें तिरस्कृत पूछें सब क्या कमाई है
वक्त बवंडर सा लगता है तिनके सा व्यक्तित्व
ऊपर से चिकने-चुपड़े बिखरा-बिखरा है निजत्व
अधरों पर चिपकी मुस्कान दिल अवसर सौदाई है
कौन है असली कौन है नकली वक्त की दुहाई है
जिसने भी दिल से बोला है कहते सब भोला है
अपनी-अपनी सबकी तराजू सबका अपना तोला है
अजब दौड़ है न कोई ठौर है दिखती चतुराई है
जिधर देखती एक चमक दुनिया लगती धाई है
ऐसी गति में गति न मिले बगिया कुम्हलाई है
खिली-खिली सी लगो यह प्रीत कहाँ से पाई है
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
सराहनीय प्रस्तुति.सुन्दर शब्दों से मन की बातों को उकेरा है.
जवाब देंहटाएंबहुत खुब
जवाब देंहटाएंयह प्रीत कहाँ से पायी है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे भावो को शब्द दिये हैं आपने
बधाई
बहुत सुन्दर कहा आपने
जवाब देंहटाएंअपनी जिंदगी अब टीवी सीरीयल की तरह हो गई है....
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
प्यार हासिये पर बैठा ........क्या बात है सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई
जवाब देंहटाएंशायद वेलेंटाइन दिन का असर हो इस प्रीत के पीछे धीरेन जी ......
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण और यथार्थ प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसूखे सियाह चहरे पर चिपकी उदास सी मुस्कानें
जवाब देंहटाएंसफल, संपन्न बन जाने को हैं हुए सब दीवाने
प्यार हाशिए पर बैठा नित होती उसकी रंगाई है
भावनाएं रहें तिरस्कृत पूछें सब क्या कमाई है
बहुत सुन्दर !