शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

एक खयाल

एक खयाल भाग उठा उस दिशा की ओर
जिस तरफ से प्रीत की सदाएं आ रहीं
कल्पनाएं, भावनाएं हो रहीं अधीर अब
धड़कनें अनुराग का हैं गीत गा रहीं

आगमन को मन व्याकुल चलता घुल-घुल
बुलबुलों संग फूटती हैं भावनाएं बन हंसीं
पल यह ढूंढे व्यग्रता से आपका संदेशा धवल
गगन संग समीर डोले धरती धूरी में फसीं

अर्चना निजतम है प्रेम की गुहार अप्रतिम
ढूंढता है मन है क्या जाने क्या कहीं-कहीं
टुकड़े-टुकड़े जोड़कर ज़िंदगी संवरती बढ़े
राह की कठिनाईयों संग आप पर है यकीं

कौन किसको कब भाए कहा ना जाए
एक ही सम्पर्क में हो जाए दिलबसीं
कितने रिश्ते बंधनों में दे सके परिपूर्णता
तृष्णा से हार अग्नि में शबनम फंसी.






भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ....शुभकामनायें

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  2. .

    टुकड़े -टुकड़े जोड़कर जिंदगी संवरती बसे --- बेहद प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया है भावनाओं कों ।
    हृदयस्पर्शी रचना ।

    .

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  3. अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई की पात्र है

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