सोमवार, 24 जून 2024
शब्द और भाव
शब्द लगाते भावनाओं की प्रातः फेरियां
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां
प्रतिदिन देह बिछौना का हो मीठा संवाद
कोई करवट रहे बदलता कोई चाह निनाद
यही बिछौना स्वप्न दिखाए मीठी लोरियां
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां
किसको बांधे चिपकें किससे शब्द बोध
शब्द भाव बीच निरंतर रहता है शोध
प्रेमिका सी चंचलता भावना की नगरिया
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां
प्रेमी सा ठगा शब्द चंचल प्रेमिका भाव
शब्द हांफता बोल उठा पूरा कैसे निभाव
अवसर देख स्पर्श उभरा छुवन की डोरियां
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां।
धीरेन्द्र सिंह
24.06.20२4
15.17
रविवार, 23 जून 2024
ठुड्डी पर चेहरा
कहां से कहां ढूंढ लेती है आप
हथेली पर ठुड्डी चेहरे का आब
रचना मेरी पाती प्रशंसा आपकी
दूं यहां धन्यवाद आपको जनाब
यूं लिखती भी हैं प्यारी कविताएं
भावों में तिरोहित लगें प्रीत ऋचाएं
समझ भी कहां पाए जग आफताब
दूं यहां धन्यवाद आपको जनाब
आज लिख रहा हूँ केवल आपको
हूँ मैं वैसा नहीं भाव को ढाँप दो
एक तिनका हूँ लहरें हैं लाजवाब
दूं यहां धन्यवाद आपको जनाब।
धीरेन्द्र सिंह
23.06.2024
11.16
नौका बाती
अपनी अठखेलियों का समंदर बनाइए
बिन पाल नौका का भ्रमण फिर कराइए
यह आपकी है कुशलता और विशिष्टता
किनारे खड़ा मन न और भरमाइए
लहरों की चांदनी सा होगा भाव नृत्य
एक-दूजे के होंगे पूरक निज कृत्य
जल कंपन की भावनाओं को समझाइए
किनारे खड़ा मन न और भरमाइए
अस्तित्व के विकास में है व्यक्तित्व गूंज
कामनाएं मेरी रहीं, आपका निजत्व पूज
एक अर्चना है नौका बाती तो सुलगाईए
किनारे खड़ा मन न और भरमाइए।
धीरेन्द्र सिंह
23.06.2024
16.05
अतिरंगी
अतिरंगी अतिरागी मिली सजनिया
अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया
सूफी सोचें यह प्रभु का ही सम्मान है
प्रेमी सोचें प्रियतमा सुघड़ अभिमान है
जैसी रही भावना मन वैसा नचनिया
अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया
हर मन सोचे, परिवेश नोचे, बोले धोखे
हर तन डोले, रस्सी तोड़े, सुप्त अंगों के
उन्मुक्त गगन का गमन चाँद चंदनिया
अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया
सूफी हों या बैरागी या प्रकंड वीतरागी
सब चाहें उन्मुक्तता, कर सेवा बड़भागी
प्यार और पूजा, एक कलश धमनियां
अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया।
धीरेन्द्र सिंह
23.06.2024
15.41
सत्य की चुन्नटें
सत्य की चुन्नटें असत्य खुले केश हैं
नारियां ऐसी भी जिनके कई भेष हैं
कौन जाने किस तरह खुली भावनाएं
धुंध सी उभर रहीं कामनाएं अशेष हैं
प्यार का शामियाना अदाओं के शस्त्र
घायल, मृतक कई उत्साह पर विशेष है
शामियाना वहीं लगे जहां नई संभावनाएं
पुराने को अचानक त्यजन जैसे मेष है
अब भी सबला है अपने ही कर्मों से
उन्मादित, दुस्साहसी लिए संदेश है
नाम, प्रसिद्धि, दबंगता आसीन हो
यह हिंसक, आक्रामक कमनीय शेष है।
धीरेन्द्र सिंह
23.06.2024
07.25
शनिवार, 22 जून 2024
उलीचता मन
उलीचता मन तो सद्भाव, दुर्भाव है
इसी क्रम में जिंदगी का निभाव है
आप एक प्रश्न हैं असुलझी सी कहीं
सुलह हो जाए यह काल्पनिक दबाव है
कहां सहज है किसी मिलन का होना
जीव अनुभूतियों का अनगढ़ स्वभाव है
प्रत्यक्ष हो या कि हो ऑनलाइन वह
प्रत्येक संपर्क का विगत का प्रभाव है
मानवता क्रमशः खिसके जता मजबूरी
दूरी जहां वहां मिलता हृदय गांव है
जीवन है खेना या तिलतिलकर खोना
लोग क्या कहेंगे सोच दौड़ता पांव है।
धीरेन्द्र सिंह
22.06.2024
15.16