सोमवार, 14 अगस्त 2017

फ़्रेंड रिक्वेस्ट कभी भी न भाया
कई रिक्वेस्ट लिए प्रतीक्षा है
जो भी लपक पड़े दोस्त बना लें
भीड़ बढ़ाना ही क्या सदिच्छा है

200-300 मित्रों की लंबी सूची
20-30 से भी न वार्ता समीक्षा है
एक शौक है या कि प्रदर्शन झूठा
फ़्रेंड रिक्वेस्ट भी प्रभु इच्छा है

आप कैसे है, शुभ रात्रि प्रभात ही
इनबॉक्स में भावों की भिक्षा है
शायद 1 या 2 करें खुल कर बातें
शेष फ़्रेंड मात्र खयाली समीक्षा हैं

ऑनलाइन में भी दिखावे की ज़िंदगी
भाव बंदगी की नहीं कहीं दीक्षा है
बांध एक बना दिया अटके फ़्रेंड रिक्वेस्ट
प्रवाह तरल सरल हो मिली शिक्षा है।
.छुट्टियों का दिन अजीब होता है
दिल तो दिल हर करीब होता है

पत्नी कहे मोबाइल से न चिपको
प्रिये बोले न साथ नसीब होता है

तुला राशि है पर संतुलन न हो
असंतुलन में ही अदीब होता है

यह छुट्टियां सौतन सी रहीं सता
मिज़ाज़ खौफ के नसीब होता है

प्यार पर कब हुआ नियंत्रण कभी
ढूंढ रहा मन कोई तरकीब होता है।
.धीमी धीमी प्यार की आंच
मुझको कर ली पूरा बांच

एक समर्पित रागिनी मिली
दुनियादारी की धतूरा साँच

आक्रामक शेरनी सी हुंकारे
चटख गए सब नूरा कांच

मुझसे कोई ना बात करे यूं
प्रीत की न दे कोरा  नाच

ओ प्रिये सुन तो रही होगी
तुम मेरी हो सुनहरा उवाच।
आसमां छूट रहा कसी मुट्ठी से
लड़ने लगी ज़िन्दगी चुटकी से

कितनी तन्हाईयों ने अब आ घेरा
डेरा और डरे उनकी घुड़की से

मान लेगा मन जो भी कहें वह
कहां फिर मुक्ति मनकी कुड़की से

प्यार समर्पण का दर्पण रहा हमेशा
तर्पण प्यार का प्रिये की खिड़की से।
.शब्द तब तलवार उमंग ढाते हैं
जब वो तीसरे को संग लाते हैं

कल तक प्यार के गोते लगे
आज वह इश्किया बेरंग भाते हैं

किसी के हक को छीनना न प्यार
देर बहुत कर अब बतलाते हैं

एक लंबी दूरी प्यार का तय कर
प्यार की राह बेढंग जतलाते हैं

कौन आया उनकी ज़िंदगी में नया
चमक उसकी ले बेरंग लौटाते हैं।
दुख दर्द कहां प्यार में ऐतबार कीजिये
भटके हैं तो मुझ सा जी प्यार कीजिये

नस-नस में रोम-रोम में बसी है प्रिये
अपने को यूं बसाकर सत्कार कीजिये

दूरी बहुत है पर मोबाइल भी है जरिया
नजरिया दिल लगी का आधार कीजिये

रोना बिलखना कहां प्यार को जतलाये
प्यार नहीं हार महज ऐतबार कीजिये

माना कि लिपट चिपट कर जीना चाहे
वीडियो चैट से ऐसा ही करार कीजिये

सब कुछ सब कहीं मिलता नहीं यहां
जहां में हैं तो जहां को स्वीकार कीजिये।

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

गमगीन है, उदास है
डगमग लगे विश्वास है
एक द्वंद्व अजूबा सा
वैचारिक उलझा उच्छवास है

यह प्यास की अपूर्णता
या फिर नई तलाश है
मन तो आराजित रहे
जीवन में क्या खास है

जो उलझा वही सुलझा
जो सुलझा वही विन्यास है
निष्क्रियता है स्पंदनहीनता
उलझिए न क्यों हताश हैं

पीड़ा का अर्थ नवीनता
सहनशीलता ही आकाश है
धरा की जो है उर्वरताएँ
अनेकों संभावनाओं की आस है।