सोमवार, 14 अगस्त 2017

.धीमी धीमी प्यार की आंच
मुझको कर ली पूरा बांच

एक समर्पित रागिनी मिली
दुनियादारी की धतूरा साँच

आक्रामक शेरनी सी हुंकारे
चटख गए सब नूरा कांच

मुझसे कोई ना बात करे यूं
प्रीत की न दे कोरा  नाच

ओ प्रिये सुन तो रही होगी
तुम मेरी हो सुनहरा उवाच।
आसमां छूट रहा कसी मुट्ठी से
लड़ने लगी ज़िन्दगी चुटकी से

कितनी तन्हाईयों ने अब आ घेरा
डेरा और डरे उनकी घुड़की से

मान लेगा मन जो भी कहें वह
कहां फिर मुक्ति मनकी कुड़की से

प्यार समर्पण का दर्पण रहा हमेशा
तर्पण प्यार का प्रिये की खिड़की से।
.शब्द तब तलवार उमंग ढाते हैं
जब वो तीसरे को संग लाते हैं

कल तक प्यार के गोते लगे
आज वह इश्किया बेरंग भाते हैं

किसी के हक को छीनना न प्यार
देर बहुत कर अब बतलाते हैं

एक लंबी दूरी प्यार का तय कर
प्यार की राह बेढंग जतलाते हैं

कौन आया उनकी ज़िंदगी में नया
चमक उसकी ले बेरंग लौटाते हैं।
दुख दर्द कहां प्यार में ऐतबार कीजिये
भटके हैं तो मुझ सा जी प्यार कीजिये

नस-नस में रोम-रोम में बसी है प्रिये
अपने को यूं बसाकर सत्कार कीजिये

दूरी बहुत है पर मोबाइल भी है जरिया
नजरिया दिल लगी का आधार कीजिये

रोना बिलखना कहां प्यार को जतलाये
प्यार नहीं हार महज ऐतबार कीजिये

माना कि लिपट चिपट कर जीना चाहे
वीडियो चैट से ऐसा ही करार कीजिये

सब कुछ सब कहीं मिलता नहीं यहां
जहां में हैं तो जहां को स्वीकार कीजिये।

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

गमगीन है, उदास है
डगमग लगे विश्वास है
एक द्वंद्व अजूबा सा
वैचारिक उलझा उच्छवास है

यह प्यास की अपूर्णता
या फिर नई तलाश है
मन तो आराजित रहे
जीवन में क्या खास है

जो उलझा वही सुलझा
जो सुलझा वही विन्यास है
निष्क्रियता है स्पंदनहीनता
उलझिए न क्यों हताश हैं

पीड़ा का अर्थ नवीनता
सहनशीलता ही आकाश है
धरा की जो है उर्वरताएँ
अनेकों संभावनाओं की आस है।

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

.सेदोका

हिम खंड लो
टूटती जलधारा
तोड़े तटबंध को
रोक लो अब
वरना तो डरना
जलमग्न बहना।

2. खुले में शौच
     खोले रोग अपार
     गंदगी भरमार
     बंद हो द्वार
     सफाई की पुकार
      आप ही सरकार।

3.  प्लास्टिक रोको
     यह घातक बड़ा
     न उपयोग बढ़ा
     प्लास्टिक है बुरा
     उपयोग बंद हो
     मानव तू नहीं सो।

4. गीला सूखा रे
    अलग हो कचड़ा
    ना कर तू लफड़ा
    गीला अलग
    सूखा कचड़ा भी
    शुद्ध परिवेश जी।

5. गंगा पवित्र
    नदी नहीं जीवन
    आत्मा का ही यौवन
     फूल न बहा
     प्रार्थनाएं ही बहे
     गंगा कितना सहे।

   

गुरुवार, 6 जुलाई 2017

वही हौसला है
क्या फैसला है
उम्मीदों का बादल
फिर निकल पड़ा है

एक अनुभूति गहराती
मन प्यासा घड़ा है
एक ज़िन्दगी की गति
स्वप्न मूक खड़ा है

विस्मय निरख रहा
एहसास बड़ा है
सौंदर्य सुगंधमयी
नैवेद्य पड़ा है

प्रांजलता की चाहत
अकुलाहट अकड़ा है
हृदय में रागिनियाँ
कूदता भोला बछड़ा है।