रविवार, 17 अगस्त 2025

रिश्ते

कुछ रिश्ते इतने रम जाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं


झटके दर झटके भी है अदा

रिश्ता है तो नोक-झोंक बदा

कब अपने रिश्ते में भर जाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं


झटके से जो मरता रिश्ता नहीं

खट से मार डालें सिसकता नहीं

रह-रहकर तेज धार दिखलाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं


कई मर चुके उसकी गिनती कहां

जो अब मर रहे उनमें विनती कहां

भाव इस विलगाव पर झुंझलाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

17.08.2025

19.55

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें