कुछ रिश्ते इतने रम जाते हैं
कि न जाने कब मर जाते हैं
झटके दर झटके भी है अदा
रिश्ता है तो नोक-झोंक बदा
कब अपने रिश्ते में भर जाते हैं
कि न जाने कब मर जाते हैं
झटके से जो मरता रिश्ता नहीं
खट से मार डालें सिसकता नहीं
रह-रहकर तेज धार दिखलाते हैं
कि न जाने कब मर जाते हैं
कई मर चुके उसकी गिनती कहां
जो अब मर रहे उनमें विनती कहां
भाव इस विलगाव पर झुंझलाते हैं
कि न जाने कब मर जाते हैं।
धीरेन्द्र सिंह
17.08.2025
19.55
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