शब्द कितने चुक गए संवाद
फिर भी कथनी नहीं आबाद
प्यार कितने रूप में हैं बिखरे
और कितने भाव के जज्बात
शब्द भाव लगे रेत धूरी
भाव निभाव की हरकत अधूरी
कल्पनाओं की सजे नित बारात
अनुभूगियों के भी घात-प्रतिघात
भंवर सा घूमता भाव प्यार
संवर कर ढूंढता चाव धार
सीढ़ियों पर दिखता हर नात
प्यार ऊंचा हो कबकी बात
लिख रहे कुछ, जिएं प्यार
पढ़ रहे, समझ की झंकार
शब्द चुका या चुका संवाद
कथनी संग मथनी नित मुलाकात।
धीरेन्द्र सिंह
27.11.2023
21.29
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