सत्य का उद्गम कहां
मवेशियों की चाह है
चारागाह की समीक्षा
युगों से अथाह है
दृष्टि परिधि में विधि
तिथि निधि माह है
अवलोकन ही तथ्य
रीति प्रतीति खास है
स्व सुकृति लगे विभाजित
मर्यादित क्या राह है
एकल एकत्व कहीं नेपथ्य
अर्थाघृत अमृत वाह है
खंडित मंडित हो रहे
पंडित ज्ञानी आह हैं
रंजित व्यंजित संधि
संचित वंचित दाह है
खोह में भी टोह
मोह लगे स्याह है
सोह सकल आधिपत्य
कलुषता अथाह है
भगवान भव्य कहे श्रव्य
अंतस अपथ प्यास है
सत्य से संपृक्त व्यक्तित्व
कृतित्व क्यों उदास है।
धीरेन्द्र सिंह
24.06.2023
07.12
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