बुधवार, 21 जून 2023

धड़ाधड़ लेखन भ्रम साहित्य


शब्द को उलीचते आदित्य हो गए

बिन तपे वह तो साहित्य हो गए


जो भी लिख दिए वह भाव गहन

लाईक टिप्पणियों सानिध्य हो गए

एक कोना रोशनी कृत्रिम कर वो

रचनाधर्मिता के आतिथ्य हो गए


यौन वर्जनाओं को प्रेम हैं कहते

बोल्ड लेखन के मातृत्व हो गए

दूसरों की प्रतिक्रिया अश्लीलता लगे

शोर मचाते वह स्त्रीत्व हो गए


धड़ाधड़ लेखन भ्रम साहित्य का

प्रदीप्त क्या लगे, कृतित्व हो गए

साहित्य सरणी का प्रस्फुटन वह

यह सोच समेट, निजत्व हो गए


हिंदी में कथाकार, कवि का घनत्व

अपनत्व छांव में कवित्व हो गए

हर रोज मंडली भजन भाव से मिले

कारवां सीमित में औचित्य हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

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