सोमवार, 19 जून 2023

मुंतशिर हो गए

 

पहले देखा, बद्र बशीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


याद शायरी महकी उनकी जुबानी

हिंदी की मचलती दिखी रवानी

मोहब्बत की बदली नीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


छल कपट बहुरूपिया अंदाज लिए

क्षद्म खूबसूरती का नाज लिए

चाहतों की दरिया के पीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


इतिहास, पुराण की भ्रमित घ्राण

नई पीढ़ी तक पहुंचाने दिव्य प्राण

हवन कुंड की तो खीर बन गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


घमंडी रणबांकुरे भी तीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

20.06.2023

06.48

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