मंगलवार, 14 मार्च 2023

दोहा

 दोहा


अपने दिल के कांच में,कहां-कहां है सांच

प्रणय निवेदन से पहले,उसको लीजै बांच


कितनी पड़ी किरीच है,चश्मा स्क्रैच सा नात

दिल भी शीशा नतकर,यहां-वहां पसरा घात


प्रेम वायरस अजर-अमर है,हृदय से उठती आंच

कोई उससे कला सजा ले,कोई तड़पन लिए सांस


हर युग प्रेम है बांचता, प्रेम चढ़ा न गाछ

जुगत, जतन सब चुके, खिल कुम्हलाती बांछ


आत्मा का दिल द्वार है, दिल से तन्मय तांत

बुने चदरिया पंथ, धर्म का, एक चादर-चादर बांट।


धीरेन्द्र सिंह

15.03.2023

06.46






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