स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं
बातें ख्वाबों में अक्सर दब जाती हैं
अधूरी चाहतों की सूची है बड़ी
चाहत संपूर्णता में कब आती है
चुग रहे हैं हम चाहत की नमी
यह नमी भी कहाँ अब्र लाती है
सब्र से अब प्यार भी मिले ना मिले
ज़िंदगी सोच यही हकलाती है
इतने अरमान कि सब बेईमान लगें
एहसान में भी स्वार्थ संगी-साथी है
दिल की तड़प, हृदय की पुकार
आज के वक़्त को ना भाती है
प्यार के गीत लिखो प्यार डूबा जाय
इंसानियत निगाहों को ना समझ पाती है
फ़ेसबुक,ट्वीटर,एसएमएस की गलियाँ
प्यार को तोड़ती, भरमाती हैं।
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
आज के वक्त की नब्ज को पहचानती हुई एक कविता...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा है ये गलियां बहुत भरमाती हैं... यहाँ सब स्वार्थ के संगी साथी हैं... सटीक लेखन
जवाब देंहटाएंwaah bahut khub likha hai aapne samay mile kabhi to aaiyegaa meri post par aapka svagat hai
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/11/blog-post_20.html
बहुत सुंदर रचना आभार
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