गुरुवार, 24 नवंबर 2011

झुक गयी साँझ

झुक गयी साँझ एक जुल्फ तले
चाँद हो मनचला इठलाने लगा
सितारों की महफ़िलें सजने लगी
आसमान बदलियाँ बहकाने लगा

नीड़ के निर्वाह में जीव-जन्तु व्यस्त
चूल्हों में अभाव अकुलाने लगा
मान-मर्यादा के उलझन में उलझ
मकड़जाल फिर वही सुलझाने लगा

शाम का सिंदूरी आमंत्रण तमस में
राग संग रागिनी जतलाने लगा
गीत,स्वर रूमानियत के रस पगे
भावों को परिवेश बहलाने लगा

सूर्य सा तपता हुआ श्रम स्वेद बन
दिन को अपना क्लेश बतलाने लगा
साँझ,जुल्फ, चाँद ,सितारे सहमे
आह से वह ख्वाबों को जलाने लगा.
   

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

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