बुधवार, 6 अप्रैल 2011

पराक्रमी

शक्ति,शौर्य, संघर्ष ही नहीं है हल
संग इसके भी चरित्र एक चाहिए
पद,प्रतिष्ठा,पराक्रम से न बने दल
उमंग के विश्वास में समर्पण भी चाहिए

लक्ष्य भेदना ही धर्म नहीं है केवल
सत्कर्म को वर्गों में बांटना चाहिए
एकल हुआ विजेता तो यह कैसी जीत
वैचारिक ऊफान को भी  जीतना चाहिए

जीत-हार से बंधता नहीं पराक्रमी
पद,प्रतिष्ठा यहॉ सबको नहीं चाहिए
कर्म की धूनी पर पके लक्ष्यी कामनाएं
परिवर्तन के लिए पैगाम कोई चाहिए

एक ही सुर से जुड़ता रहा है कोरस
गीत की प्रखरता को निखारना चाहिए
नई नज़र, नई डगर हासिल नहीं सबको
धूप चुभन में सूरज को ललकारना चाहिए. 


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

8 टिप्‍पणियां:

  1. geet kee prakharta
    nai nazar nai dagar
    .... suraj ko lalkarna chahiye, bahut hi ojaswi rachna

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  2. umang ki vishvas men samaparn bhi chahiye ...
    bahut hi oojpurn rachna ,badhai

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  3. जोश से भरी ओजपूर्ण रचना ... सुन्दर प्रस्तुतीकरण के लिए आभार...

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  4. ओजपूर्ण रचना ..ऐसा ही कुछ होना चाहिए

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  5. बहुत प्रेरक और ओजपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  6. आपके ब्लॉग पे आया, दिल को छु देनेवाली शब्दों का इस्तेमाल कियें हैं आप |
    बहुत ही बढ़िया पोस्ट है
    बहुत बहुत धन्यवाद|

    यहाँ भी आयें|
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  7. चरित्रवान बने रहना ही आज की चुनौती है, हार मान कर राह बदल लेना चरित्र की हार है।

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