निर्मोही निर्लिप्त सजल है
यह माटी में जमी गज़ल है
खुरच दिए इक परत चढ़ी
चेहरे में भी अदल - बदल है
लोलुपता लालसा लय बनी
इसीलिए यह नई पहल है
नई क्रांति का नया बिगुल
चंगुल में लाने का छल है
मानव का मुर्दा बन जीना
फिर भी कितनी हलचल है
नई परत से चेहरा नया
हर कठिनाई का यह हल है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
यह माटी में जमी गज़ल है
खुरच दिए इक परत चढ़ी
चेहरे में भी अदल - बदल है
लोलुपता लालसा लय बनी
इसीलिए यह नई पहल है
नई क्रांति का नया बिगुल
चंगुल में लाने का छल है
मानव का मुर्दा बन जीना
फिर भी कितनी हलचल है
नई परत से चेहरा नया
हर कठिनाई का यह हल है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
जीवन की सच्चाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
मानव का मुर्दा बन जीना
जवाब देंहटाएंफिर भी कितनी हलचल है ।
बेहतरीन प्रस्तुति ।
manav ka murda ban jeena ....aur halchal , badi gahre arth hain
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंमानव का मुर्दा बन जीना
जवाब देंहटाएंफिर भी कितनी हलचल है
नै परत से चेहरा नया
हर कठिनाई का यह हल है.
बहुत अच्छी बात कही है.
सुंदर नज़्म पेश की है.