मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

आप जैसे पढ़नेवालों संग

गुम होकर गुलिस्तॉ में छुप जाना चाहिए
लेकर नई खुश्बू रोज़ गुनगुनाना चाहिए

करवट बदलती ज़िदगी कब कर जाए क्या
पुरवट सा खुशियों को अब बहाना चाहिए

नित नई चुनौतियों में संघर्ष,हार-जीत है
निज़ता को बांटकर अजब तराना चाहिए

एक मुस्कराहट से मिले दिल की हर आहट
घबराहट समेटकर संग खिल जाना चाहिए

मन की उमंग पर तरंग हो ना फीकी कभी
आप जैसे पढ़नेवालों संग जुड़ जाना चाहिए.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
 अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

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