रविवार, 14 सितंबर 2025

कहकहे

 दुनिया भी है सहमत हम ही ना कहें

बिना विवाह बिना साथ रहे कहकहे


भावनाओं का अबाधित आदान-प्रदान

समझदार ही मिलें नहीं हैं यहां नादान

नवजीवन नवसुविधाएँ तपिश क्यों सहे

बिन विवाह बिन साथ रहे कहकहे


जीवन ऑनलाइन है मोबाइल धड़कने

जीवंत जो है जिए क्यों भला अनमने

प्रचंड वेगों से अनुकूल चुनकर बहे

बिन विवाह बिन साथ रहे कहकहे


आत्मिक उत्थान का यह युग बिहान

हर समस्या का है ऑनलाइन निदान

जिनदगी जो जीता पूछता न फलसफे

बिन विवाह बिन साथ रहे कहकहे।


धीरेन्द्र सिंह

15.09.2025

05.02


शनिवार, 13 सितंबर 2025

हिंदी-हिंदी-हिंदी

 हिंदी-हिंदी-हिंदी तेरी क्या है जिज्ञासा

बोली 14 सितंबर है कहां है राजभाषा


संविधान कहता हिंदी संघ की राजभाषा

यथार्थ है कहता राजभाषा बनी तमाशा

हिंदी दिवस 14 सितंबर उभरी लिए आशा

बोली 14 सितंबर है कहाँ है राजभाषा


प्रौद्योगिकी की भाषा आधिकारिक अंग्रेजी

न्यायालय, कार्यलयों के मूल लेख अंग्रेजी

राजभाषा हिंदी खड़ी लिए कई जिज्ञासा

बोली 14 सितंबर है कहाँ है राजभाषा


विभिन्न हिंदी मंच की प्रतिवर्ष की नौटंकी

हिंदी सर्वत्र होगी यही है जोश प्रण नक्की

महाराष्ट्र, दक्षिण राज्य पीटें भाषा ढोल-ताशा

बोली 14 सितंबर है कहाँ है राजभाषा।


धीरेन्द्र सिंह

13.09.2025

16.16


शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

निरर्थक टिप्पणीकार

 सुनिए जी सुनिए

इसे भी तो गुनिए

इस समूह में सरकार

होता इमोजी का व्यवहार


रोज उनीदे आते हैं

इमोजी टिप्पणी चिपकाते हैं

पोस्ट को क्यों पढ़ना

बस हाजिरी लगाते हैं


ओ इमोजी के चित्रकार

लिखने से क्यों घबड़ाते हैं

पोस्ट नहीं पढ़ना तो ठीक

रोज इमोजी क्यों चिपकाते हैं


शब्द भाव से अगर अरुचि

पोस्ट अगर नहीं पढ़ पाते हैं

तो क्यों आते पोस्ट पर जी

नकारात्मकता फैलाते हैं


देखादेखी अन्य बने हमराही

लिखना छोड़ इमोजी दिखाते हैं

लिखने-पढ़ने में यदि पैदल

इमोजी से क्या जतलाते है


हिंदी के प्रति है दुर्व्यवहार

लेखन संग हिमोजी भाते है 

मात्र इमोजी से हिंदी दब रही

ऐसे हिंदी विरोधी क्यों आते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

13.09.2025

07.52




गुरुवार, 11 सितंबर 2025

तुम जुड़ो

 हम ऐसे बंधनों को उकेर कर जिएं

मेरा हृदय बनो तुम जुड़ो बन प्रिए


कामनाएं पढ़ तुमको कुलबुलाती हैं

अपेक्षाएं भाव मृदुल संग बुलाती हैं

जो जँच रहा बिन उसके कैसे जिएं

मेरा हृदय बनो तुम जुड़ो बन प्रिए


आसक्ति की बाती पढ़ तुमको जल उठी

नई रोशनी जली चिंगारियां मचल उठी

एक तपिश भरी कशिश बवंडर लिए हिए

मेरा हृदय बनो तुम जुडो बन प्रिए


कोई न देखता कोई न सोचता अब है

दूरियां भी व्यक्ति मिलता अब कब है

फिर भी मिलन चलन लोग ऐसे जिएं

मेरा हृदय बनो तुम जुड़ो बन प्रिए।


धीरेन्द्र सिंह

11.09.2025

23.08

रुबिका लियाकत

 हिंदी चैनल पत्रकारिता की शराफत

प्रत्यक्ष लगता, हैं रुबिका लियाकत


प्रथम चर्चा पर रखतीं पूर्ण नियंत्रण

पैनल वक्ता को देती क्रमशःनिमंत्रण

कुछ भी बोल चलें होती न हिमाकत

प्रत्यक्ष लगता, हैं रुबिका लियाकत


आकर्षक वेशभूषा बड़ी गोल बिंदी

दमकता भाव चमकती लगे हिंदी

इतनी प्रखर पत्रकारिता की सियासत

प्रत्यक्ष लगता, हैं रुबिका लियाकत


बिना किसी दबाव बिना किसी पक्ष

चर्चा का जो विषय वही होता लक्ष्य

अध्ययन, शोध की बौद्धिक नज़ाकत

प्रत्यक्ष लगता, हैं रुबिका लियाकत।


धीरेन्द्र सिंह

12.09.2025

17.43




बुधवार, 10 सितंबर 2025

श्रेष्ठ रचनाकार

 पुस्तक प्रकाशन की आवश्यकता क्या है

प्रौद्योगिकी जब स्पष्ट कार्य करने लगी है

कश्मीर और बंगाल को पढ़ पाते भी कितना

विवेक अग्निहोत्री प्रतिभा जो कहने लगी है


गहन शोध कर सत्य कथ्य को खंगालकर

पटकथा, अभिनय, संवाद लेंस जड़ी है

निर्देशन से अभिनय सहज होकर जागृत

पुस्तकों की बातें स्पष्ट अब स्क्रीन चढ़ी हैं


हिंदी के श्रेष्ठ रचनाकार हैं विवेक अग्निहोत्री

दग्ध कोयला भी हथेली पर ठुमकने लगी है

निर्भीकता से इतिहास सजीव करें प्रस्तुत

पुस्तकें अभिव्यक्तियों में पिछड़ने लगी है।


धीरेन्द्र सिंह

10.09.2025

17.56



मंगलवार, 9 सितंबर 2025

गीत सावनी

तृषित अधर है लोग किधर हैं
ऐसा क्या जो तितर-बीतर है
मेघा को बरसाओ न
गीत सावनी गाओ न

अगड़म बगड़म कैसा तिकड़म
गली-गली कस्बा और शहरम
मेधा और जगाओ न
गीत सावनी गाओ न

हाथ कहां, अंगुलियां है गुदगुदाती
लक्ष्य भ्रमित, पर हैं पथ बतलाती
लक्ष्य को जगाओ न
गीत सावनी गाओ न

वृंदगान का पहर उभर बौराए
धुन उठ रही शब्द कौन रचाए
सरगमी गीत बनाओ न
गीत सावनी गाओ न।

धीरेन्द्र सिंह
09.09.2025
18.28