शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

तटस्थ

तटस्थ हो घनत्व को सदस्य दीजिए
निजता है पल्लवित राजस्व दीजिए
गुटबंदियां चापलूसी में हैं सन रही
कितने छोड़ रहे साथ महत्व दीजिए

अपने में दम तो बातों का क्या वहम
कारवां में सब एक यह कृतित्व कीजिए
रिश्तेदारी की खुमारी है तब दुश्वारी
जब प्रियजन समूह हैं व्यक्तित्व दीजिए

प्लास्टर लगे उखड़ने किसका प्रभाव है
किसका प्रभुत्व है यह तत्व उलीचिए
कुछ ईंटें सरकी हैं बात हद में ही है
दीवारों की खनक रहे शुभत्व कीजिए

कुछ टूट रहा है कुछ छूट रहा है
क्या कुछ लूट रहा है संयुक्त कीजिए
निर्भीकता से बोलता साहित्य हमेशा
मर्जी आपकी भले अलिप्त कीजिए।

धीरेन्द्र सिंह
10.11.2025
17.16

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

देवनागरी

 एक सदाचार धारक व्यक्ति

अतिभ्रष्ट देश में जन्म ले

वह क्या कर पाएगा

तिनके सा बह जाएगा,

आश्चर्य

काव्य में उभरा

राजनीतिक नारा,

सभ्यता सूख रही

राजनीति ही धारा ;


हिंदी साहित्य भी

क्या राजनीति वादी है

सदाचार गौण लगे

राजनीति हावी है ;


कौन कहे, कौन सुने

अपनी पहचान धुने

समूह राजनीति भरे

मंच भी अभिमान गुने,

करे परिवर्तन

राजनीति करे मर्दन,

हिंदी उदासी है

नई भाषा प्रत्याशी है ;


देवनागरी लेखन की अंतिम पीढ़ी

अदूरदर्शी चिल्लाते हिंदी संवादी

भारतीय संविधान पढ़ लें तो

ज्ञात हो है हिंदी विवादित।


धीरेन्द्र सिंह

10.10.2025

19.19



गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

गमन

गमन


वादियां

यदि प्रतिध्वनि न करें

नादानियाँ

यदि मति चिन्हित न रखें

कौन किसे फिर भाता है

मुड़ अपने घर जाता है


मुनादियाँ

यदि अतिचारी हों

टोलियां

यदि चाटुकारी हों

कौन पालन कर पाता है

मौन चालन कर जाता है


जातियां

यदि पक्षपात करें

नीतियां

यदि उत्पात करें

कौन सहन कर पाता है

मार्ग गमन कर जाता है।


धीरेन्द्र सिंह

10.10.2025

11.50




कोहराम

कोहराम है जीवन आराम कब करें

मुस्कराएं भी ना क्यों यह हद करें 


सब ठीक है ईश्वर की कृपा बनी है

कैसे कहे मन की अपनों में ठनी है

विषाद भरा मन अधर क्षद्म मद भरे

मुस्कराएं भी ना क्यों यह हद करें


अभिभावक, दम्पत्ति भी करें अभिनय

सामाजिक दायरै में दिखावे का विनय

संतान देख परिवेश उसी ओर डग भरें

मुस्कराएं भी ना क्यों यह हद करें


अपवाद कभी भी नियम नहीं होता

मुक्ति कहां देता कलयुग का गोता

वैतरणी कब मिलेगी है जग डरे

मुस्कराएं भी ना क्यों यह हद करें।


धीरेन्द्र सिंह

19.12

09.10.2025



#कोहराम#मुस्कराएं#दम्पत्ति#वैतरणी


बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

तृष्णा

आपके व्यक्तित्व में ही अस्तित्व

निजत्व के घनत्व को समझिए

अपनत्व का महत्व ही तो सर्वस्व

सब कुछ स्पष्ट और ना उलझिए


प्रपंच का नहीं मंच भाव जैसे संत

शंख तरंग में भाव संग लिपटिए 

हृदय के स्पंदनों में धुन आपकी

निवेदन प्रणय का उभरा किसलिए


आप ही से क्यों जुड़ा मन बावरा

दायरा वृहद था आपको जी लिए

आप समझें या न समझें समर्पण

अर्पण कर प्रभुत्व को तृष्णा पी लिए।


धीरेन्द्र सिंह

09.10.2025

06.35

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025

मन

 मन की अंगड़ाईयों पर मस्तिष्क का टोल

क्या उमड़-घुमड़ रहा अटका मन का बोल


तरंगों की चांदनी में प्रीत की रची रागिनी

शब्दों में पिरोकर उनको रच मन स्वामिनी

नर्तन करता मन चाहे बजे प्रखर हो ढोल

क्या उमड़-घुमड़ रहा अटका मन का बोल


अभिव्यक्त होकर चूक जातीं हैं अभिव्यक्तियाँ

आसक्त होकर भी टूट जाती हैं आसक्तियां

यह चलन अटूट सा लगता कभी बस पोल

क्या उमड़-घुमड़ रहा अटका मन का बोल


यह भी जाने वह भी माने प्रणय की झंकार

बोल कोई भी ना पाए ध्वनि के मौन तार

कहने-सुनने की उलझन मन का है किल्लोल

क्या उमड़-घुमड़ रहा अटका मन का बोल।


धीरेन्द्र सिंह

07.10.2025

21.26

#मन#चांदनी#उमड़-घुमड़#प्रणय#किल्लोल

सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

अभिनय

 अभिनय


अपूर्णता सुधार में सर्जक बन क्षेत्री

अभिनय हैं करते अभिनेता-अभिनेत्री


हम सब स्वभावतः अभिनय दुकान हैं

जितना अच्छा अभिनय उतना महान है

कामनाएं पूर्ति में सजग प्रयास की नेत्री

अभिनय हैं करते अभिनेता-अभिनेत्री


अब कहाँ सामर्थ्य बिन आवरण बहें

असत्य को सत्य सा प्रतिदिन ही कहें

बौद्धिक हैं विकसित हैं मानवता गोत्री

अभिनय हैं करते अभिनेता-अभिनेत्री


क्षद्म रूप विवशता है जग की स्वीकार्य

स्वार्थ ही प्रबल दिखावा कुशल शिरोधार्य

समाज प्रगतिशील हैं व्यक्ति बंद छतरी

अभिनय हैं करते अभिनेता-अभिनेत्री।


धीरेन्द्र सिंह

07.10.2025

04.31