रविवार, 17 अगस्त 2025

गज़ब

 सुनो में एक हद हूँ

और तुम बेहद

बात इसमें यह भी

मैं बेअदब हूँ

और तुम संग अदब,

है न गज़ब!


हम में विरोधाभास

पर मैं हताश

और तुम आकाश

बात इसमें यह भी

मैं प्रणयवादी हूँ

और तुम व्यवहारवादी

है न गज़ब!


हम में भी यह विकास

तुम दूसरे राज्य

मुझे लगो तुम साम्राज्य

बात इसमें यह भी

मैं लौ दीपक

पर तुम प्रकाश

है न गज़ब!


हम स्पष्ट विरोधाभास

मूल हित संस्कार तोड़ता बेड़ियां

तुम प्रगतिशील भूल पीढियां

बात इसमें यह भी

मैं मात्र आस

और तुम मधुमास

है न गज़ब।


धीरेन्द्र सिंह

17.08.2025

21.06





रिश्ते

कुछ रिश्ते इतने रम जाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं


झटके दर झटके भी है अदा

रिश्ता है तो नोक-झोंक बदा

कब अपने रिश्ते में भर जाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं


झटके से जो मरता रिश्ता नहीं

खट से मार डालें सिसकता नहीं

रह-रहकर तेज धार दिखलाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं


कई मर चुके उसकी गिनती कहां

जो अब मर रहे उनमें विनती कहां

भाव इस विलगाव पर झुंझलाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

17.08.2025

19.55

शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

गोविंद

 कनखियों से गोपी भाव धमाल है

माखन चोरी में अब कहाँ ताल है

दही-हांडी महाराष्ट्र का एक स्वरूप

धनवर्षा मुंबई में कृष्णोत्सव ढाल है


गोविंदा की निकलती हैं कई टोलियां

एकदूजे के कांधे पर  चढ़ना कमाल है

शारीरिक सौष्ठव संतुलन का उत्सव

"गोविंदा आला रे" संगीत ताल है


अब तो युवतियों की भी गोविंदा टोली

बहुत ऊंचाई तक जाना खयाल है

गोपियाँ भी कान्हा की तरह माखनचोर

मुम्बई में कृष्ण जन्माष्टमी द्रुतताल है।


धीरेन्द्र सिंह

16.08.2025

07.14

गुरुवार, 14 अगस्त 2025

15 अगस्त

 विश्व कहीं मस्त कहीं अस्तव्यस्त है

भारत भी कहे भविष्य 15 अगस्त है


विविधता में एकता ही प्रखर भवितव्य

विभिन्नता में श्रेष्ठता ही अधर अमृत्व

सभी ओर सक्रियता के लक्ष्य सत्य है

भारत भी कहे भविष्य 15 अगस्त है


कथ्य में सत्य की विशाल लिए संस्कृति

अपनी समस्या हटाते राष्ट्र की नित उन्नति

हर नागरिक कर्म का नैवेद्य का कक्ष है

भारत भी कहे भविष्य 15 अगस्त है


ललाट पर धारित तिरंगे की ओजस्विता

सम्राट का अस्तित्व विचारित तेजस्विता

राष्ट्र ही सर्वस्व भारत विश्वगुरु प्रशस्त है

भारत भी कहे भविष्य 15 अगस्त है।


धीरेन्द्र सिंह

15.08.2025

08.37


बुधवार, 13 अगस्त 2025

क्रंदन

 सौंदर्य की चंचलता पर संस्कारी बंधन

इतना ना जकड़िए मन में होता क्रंदन


रूपवती हैं, निगाहें मान लेती हैं गुणवती

धुनमति हैं अदाएं जान लेती हैं द्रुतगति

सौम्य, शांत, संयत, शीतल सुगंधित चंदन

इतना न जकड़िए मन में होता क्रंदन


अनदेखा कर भूल जाना भला कहां संभव

आपके सौंदर्य से प्रणय सदियों से पराभव

आसक्ति मुक्ति ना चाहे बस सौंदर्य अभिनंदन

इतना न जकड़िए मन में होता क्रंदन


भावनाओं की रिक्तियां चाहे प्यार युक्तियाँ

सौंदर्य परख दृष्टि की नित नव आसक्तियां

विनयपूर्ण सम्मान में गरिमा का हो वंदन

इतना न जकड़िए मन में होता क्रंदन।


धीरेन्द्र सिंह

14.08.2025

09.03



मंगलवार, 12 अगस्त 2025

यूट्यूब पाती

 दूसरों की कविताएं चुन जब तुम थी गाती

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती


मेरे भी गीत में की थी तुम कई परिवर्तन

सुर, लय में बांध ली भाव का था आवर्तन

आज भी हूँ सुनता जिंदगी जो पीट जाती

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती


सबकी तो हैं होती अपनी लक्ष्मण रेखा

जिसने उसको फांदा जीवन विभिन्न देखा

ऐसी रेखाएं तोड़ती बन गयी प्यार उन्मादी

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती


प्रणय को कहा बयार तुम समझ पाई सस्ता

व्यक्तित्व मिलन दुर्लभ समझी बिखरा बस्ता

चुगते गई अविवेकी कागजी नाव भाव बहाती

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती


व्हाट्सएप्प चैट वीडियो कॉलिंग अन्य हैं रास्ते

हर एप्प पर थी दिखती थी तुम दौड़ते हांफते

क्या चाह थी क्या राह थी विभिन्न तथ्य अपनाती

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती।


धीरेन्द्र सिंह

13.08.2025

09.30


जुगलबंदी

 लय में बंधी रहोगी धुन में बंधी रहोगी

संगीत जीवन का दिया तुम्हारा सानिध्य

गीत रचने लगे भाव रंग-रंग के खिलें 

होता है ऐसा ही मन का मन से आतिथ्य



लय में बंधी रहोगी धुन में बंधी रहोगी

संगीत जीवन का दिया तुम्हारा सानिध्य

गीत रचने लगे भाव रंग-रंग के खिलें 

होता है ऐसा ही मन का मन से आतिथ्य


कपोलों में हंसती थी चुराती जो अंखिया

खिल मुझसे लिपट जाता था वह साहित्य

दिल की धड़कनों पर दौड़ता बोलता मन

क्या-क्या न रच गईं तुम प्यार का आदित्य


भावनाओं को शब्दों की चूनर थी चढ़ाती

यूट्यूब में गीतों का था अभिनव दृश्यव्य

यत्र-तत्र प्रकाशित होती थी गुंजन तुम्हारी

कई सुरों का बखूबी बतला थी महत्व


वह अपनी जुगलबंदी थी छाप थी अलग

किस कदर परिवेश में था तुम्हारा आधिपत्य

प्रसिद्धि न संभाल सकी चापलूस पैठ गए

हर डगर समावेश में गा पुकारा किए अनित्य।


धीरेन्द्र सिंह

12.08.2025

17.23