राहें हैं पर उनपर विरले पथिक हैं
तेज गति वाहनों की लगती होड़ है
श्रमिक भी अब दिखते बहुत कम
मशीनों से मेहनत होती जी तोड़ है
खेत हो खलिहान हो गेहूं या धान हो
हर कार्य मशीन कहें किसानी बेजोड़ है
गांव ढूंढे श्रमिक नहीं, मशीन बुलाइए
शीघ्र कार्य पूर्ण हो फुरसत ताबड़तोड़ है
शहर बना मशीन, संग लेकर संचालक
श्रमिक को कार्य नहीं इसका न तोड़ है
गली-कूचा या हो विस्तृत मैदान कहीं
मशीन सर्वज्ञ अभियांत्रिकी निचोड़ है।
धीरेन्द्र सिंह
27.06.2024
11.24
बुधवार, 26 जून 2024
श्रमिक
अर्धनारीश्वर
पनघट पर बालाओं की बदली सी चाल
मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान
कटि पर गगरी कांधे मटकी थी सबकी
कंकड़ियां से फूटी मटकी बाला हंस दी
कान्हा दृष्टि चयन से उभरा एक गुमान
मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान
लचक-मटक कर गोपियाँ, राह रिझाएं
एक कन्हैया सबका खेवैया, रोज बुझाएं
चंचलता थी शोखी थी और गहन सम्मान
मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान
चलचित्र नायिका, विश्व सुंदरी गह गोपियाँ
पनघट बालाओं की लिए चाल युक्तियां
कटि तन लोच, उद्गम स्त्रोत, पनघट ज्ञान
मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान।
धीरेन्द्र सिंह
25.06.2024
18.04
पनघट ज्ञान
पनघट पर बालाओं की बदली सी चाल
मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान
कटि पर गगरी कांधे मटकी थी सबकी
कंकड़ियां से फूटी मटकी बाला हंस दी
कान्हा दृष्टि चयन से उभरा एक गुमान
मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान
लचक-मटक कर गोपियाँ, राह रिझाएं
एक कन्हैया सबका खेवैया, रोज बुझाएं
चंचलता थी शोखी थी और गहन सम्मान
मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान
चलचित्र नायिका, विश्व सुंदरी गह गोपियाँ
पनघट बालाओं की लिए चाल युक्तियां
कटि तन लोच, उद्गम स्त्रोत, पनघट ज्ञान
मटकी भार संतुलन था या कान्हा तान।
धीरेन्द्र सिंह
25.06.2024
18.04
सोमवार, 24 जून 2024
मन रे कुहूक
अच्छा, कहिए बात कहीं से
सच्चा करिए साथ यहीं से
व्योम भ्रमण नहीं भाता है
नात गाछ हरबात जमीं से
मन उभरा, रही संयत प्रतिक्रिया
कहे अभिव्यक्ति कोई कमी है
शब्द बोलते, है बात अधूरी
सत्य बोलना कहां कमी है
अलसाए भावों को, आजाती नींद
अधखिले वाक्य कहें जैसे गमी है
पुलकना चहकना जिंदगी का चखना
मन रे कुहूक, ऋतुएं थमी हैं।
धीरेन्द्र सिंह
25.06.2024
11.05
शब्द और भाव
शब्द लगाते भावनाओं की प्रातः फेरियां
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां
प्रतिदिन देह बिछौना का हो मीठा संवाद
कोई करवट रहे बदलता कोई चाह निनाद
यही बिछौना स्वप्न दिखाए मीठी लोरियां
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां
किसको बांधे चिपकें किससे शब्द बोध
शब्द भाव बीच निरंतर रहता है शोध
प्रेमिका सी चंचलता भावना की नगरिया
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां
प्रेमी सा ठगा शब्द चंचल प्रेमिका भाव
शब्द हांफता बोल उठा पूरा कैसे निभाव
अवसर देख स्पर्श उभरा छुवन की डोरियां
स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां।
धीरेन्द्र सिंह
24.06.20२4
15.17