शनिवार, 1 अप्रैल 2023

तरल लहरिया

 तीरे-तीरे तरल लहरिया

भरने को आतुर हैं गगरिया

तट की मिट्टी सोख रही

ना जाने कब आएं सांवरिया


अकुलाया दिन पनघट ताके

सूनी-सूनी पड़ी डगरिया

लहरों में हुंकार बहुत है

आसमान की चटख चदरिया


एक रिक्तता को भर पाना

ढूंढते बीत जाए है उमरिया

भरने का अभिनय अक्सर हो

कौन उतारे अपनी चदरिया


तरल लहरिया अविरल चलती

तट की नही बदलती नजरिया

मिट्टी सोख रही है निरंतर

जीवन जीने का क्या जरिया।


धीरेन्द्र सिंह

29.03.2023

06.37

उठे बवंडर


मिश्री घुली नमी हवा की

संदली हवा उल्लास है

कौन दिशा से आया झोंका

महका कोई कयास है


पत्ते सा दिल झूम उठा

मंजरियों में विश्वास है

आकर्षण से बंध कर आए

जिसको जिसकी तलाश है


बंधन जाने हर पल चंदन 

अभिनंदन निहित उजास है

दूर से आए सागर तीरे  

तट पर बिखरी प्यास है


वेग हवा का हूँ हूँ बोले

उठे बवंडर आस है

दूर देर तक टिका वही

जिसका बवंडर खास है।


धीरेन्द्र सिंह

28.03.2023

22.33

सोमवार, 20 मार्च 2023

गौरैया की दो रचनाएं

 विश्व गौरैया दिवस पर : दो रचनाएं


तब।           और।     अब


सोनचिरैया।           सोनचिरैया

मेरी गौरैया।          किसकी गौरैया


मन मुंडेर।           मन मुंडेर

रोज आए।           मनचाहा धाए

जियरा।             बिफरा

हर्षाए।              उलझाए

नज़रें बोले।          चाहत बोले

ता-ता थैया।         ला-ला दैया।

मेरी गौरैया।         किसकी गौरैया


भोली मासूम।        भोली मासूम

फुदक की धूम।       आकर्षण में घूम

भोर ले चूम।         चोर ले चूम

मुंडेर ले घूम।         मुंडेर चुप घूर।

मन कुहुके।          तृष्णा उदके।

उसकी छैंया।        उसकी छैयां

मेरी गौरैया।        किसकी गौरैया।


नाम गौरैया।         नाम गौरैया

प्रीत की ठइयाँ।      मीत की ठइयाँ

मुंडेर बसेरा।          मुंडेर बसेरा

भाव की नैया।        भाव खेवैया।

कल्पना सजाए।       कल्पना जिताए

यथार्थ खेवैया।        स्वार्थ खेवैया

मेरी गौरैया।।         किसकी गौरैया।


धीरेन्द्र सिंह


मंगलवार, 14 मार्च 2023

दोहा

 दोहा


अपने दिल के कांच में,कहां-कहां है सांच

प्रणय निवेदन से पहले,उसको लीजै बांच


कितनी पड़ी किरीच है,चश्मा स्क्रैच सा नात

दिल भी शीशा नतकर,यहां-वहां पसरा घात


प्रेम वायरस अजर-अमर है,हृदय से उठती आंच

कोई उससे कला सजा ले,कोई तड़पन लिए सांस


हर युग प्रेम है बांचता, प्रेम चढ़ा न गाछ

जुगत, जतन सब चुके, खिल कुम्हलाती बांछ


आत्मा का दिल द्वार है, दिल से तन्मय तांत

बुने चदरिया पंथ, धर्म का, एक चादर-चादर बांट।


धीरेन्द्र सिंह

15.03.2023

06.46






धरा


धरा की धमनियों में कितना रिसाव

माटी से पूँछें तो जल तक पहुंचाए

भू खनन, वृक्ष गमन, निर्मित अट्टलिकाएँ

एक अक्षत ऊर्जा सभी मिल भुनाएं

 

पर्वतों को तोड़े प्रगति कर धमाके

कंपन का क्रंदन कौन सुन पाए

सुनामी के लोभी रचयिता कहीं

जलतट पाट कर भवन ही बनाएं

 

धर रहा धरा को धुन लिए कहकहा

हरित संपदा, पेय जल कहां पाए

सूख रहे कुएं, नदी तेज गति से

मटकियां झुलस रहीं बोतल को धाए

 

हिमालय भी पिघल करे प्रकट रोष

गंगा की भक्ति आरती नित सजाए

अर्चनाएं आक्रांता की सद्बुद्धि उचारें

धरती की धार चलें मिल चमकाएं।

 

धीरेन्द्र सिंह

14.03.23

15.23

 

 

 

सोमवार, 6 मार्च 2023

मने होली

 

चुटकी प्यार भरी रंगबोली

नयन सहकार दो, मने होली

 

कई रंगदार हैं, अंदाज़ लुभावन

भाव पिचकारी, गगम भर सावन

चेहरे टपक रहे, रंगपूर्ण निम्बोली

नयन सहकार दो, मने होली

 

छुवन अनुभूतियों का, यह पर्व

आप हासिल नहीं, तड़प के गर्व

भर दो रंग-तरं,ग ओ विहंग अबोली

नयन सहकार दो, मने होली

 

समय की धार में उपचार का पुचकार

प्रणय के रंग हैं विभिन्न चटकार

पलकें उठ गईं अंखिया कुछ बोली

नयन सहकार दो, मने होली।

 

धीरेन्द्र सिंह

06.03.2023

15.20

 

 

 

 

शनिवार, 4 मार्च 2023

फुरसतिया हूँ

 गंगाजल में पुष्पित तैरती लुटिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


भाषा रही भरभरा जेठ दुपहरिया 

आशा विश्वभाषा हिंदी हो चुटिया

इस षड्यंत्र का मैं खूंटिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


लूट रहे हिंदी जग हिंदी के रखवाले

मंच, किताब सजा बनते हिंदी शिवाले

इस भ्रमजाल का मैं हथिया हूं

हां मैं फुरसतिया हूँ


महानगरों में रहे फैल हिंदी मदारी

हिंदी से मिले लाभ हिंदी के हैं जुआरी

ऐसे भ्रष्ट झूठे चिंतक का सुतिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


अनेक किताब लेखन स्व सुख भाया

कितने कागज, स्थान किए यह जाया

आत्मश्लाघा विरोध की दुनिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


हिंदी के लिए हमेशा उपलब्ध हूँ खलिहल

राजभाषा समेत हिंदी विकास हो अटल

कर्मभूमि का श्रमिक ना गलबतिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ।


धीरेन्द्र सिंह

05.03.23

12.03