बुधवार, 6 अगस्त 2025

प्रौढ़ावस्था

 आप चलचल, आप चपल, आप चंचल

आप धवल, आप कंवल, आप कलकल


शिशु कभी दिखता कभी दिखे किशोरावस्था

कभी यौवन उन्मादी सा क्या खूब प्रौढ़ावस्था

भाव चहके मन भी बहके देखें आंखें मलमल

आप धवल, आप कंवल, आप कलकल


अनुभवों के प्रत्येक चरण आपके हैं शरण

अद्भुत जिजीविषा है उमंगों का नहीं क्षरण

जिंदगी कलरव प्रणय कभी रिसी छलछल

आप धवल, आप कंवल, आप कलकल


बढ़ती उम्र ढलती देह भला क्यों सोचे नेह

दृष्टि भाव ही सर्वस्व नयन, अधर भरे स्नेह

आप तरंग, आप विहंग, आप सुगंध पलपल

आप धवल, आप कंवल, आप कलकल।


धीरेन्द्र सिंह

07.08.2025

07.40

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