एक सुंदर एहसास सा तेरा
अपरिभाषित होने का घेरा
सिर्फ अनुभूतियों में ध्वनित
बोल न कौन तेरा है चितेरा
धरती, अम्बर, बादल, चांद
यह सब छुपने के हैं मांद
मौन स्पंदन वर्तमान का घेरा
बोल न कौन तेरा है चितेरा
हवा, शाम, रातों की अदाएं
तू दूर तेरा ख्वाब हैं जगाए
प्रतिध्वनियों का गुंजित घेरा
बोल न कौन तेरा है चितेरा
होना तुम्हारा क्या मेरा जीवन
दर्द विरह हृदय का सीवन
क्यों रह-रह बोले बाहों का घेरा
बोल न कौन तेरा है चितेरा।
धीरेन्द्र सिंह
12.07.2023
06.40
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें