मंगलवार, 18 जुलाई 2023

सावन

 मेघों की मस्तियाँ व्योम भरमा गयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी


वनस्पतियों में अंकुरण का जोर है

पहाड़ियां कटें संचरण में शोर है

मेरी बालकनी देख सब भरमा गयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी


सावन में प्रकृति ही है निज प्रेमिका

पावन परिवेश में गूंजे है गीत प्रेम का

हृदय तंतुओं में रागिनी यूं समा गयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी


निज अकेला बैठ प्रकृति निहार रहा

हवाओं की मस्ती या कोई पुकार रहा

पुष्प, पत्ती में निहत्थी बूंद नरमा गयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी


हर किसी को ना आए समझ हया

हर कोई बूझे ना सावन मांगे दया

सुप्त भाव तरंगे उभर नव अरमां भयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2023

08.15

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