मेघों की मस्तियाँ व्योम भरमा गयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी
वनस्पतियों में अंकुरण का जोर है
पहाड़ियां कटें संचरण में शोर है
मेरी बालकनी देख सब भरमा गयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी
सावन में प्रकृति ही है निज प्रेमिका
पावन परिवेश में गूंजे है गीत प्रेम का
हृदय तंतुओं में रागिनी यूं समा गयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी
निज अकेला बैठ प्रकृति निहार रहा
हवाओं की मस्ती या कोई पुकार रहा
पुष्प, पत्ती में निहत्थी बूंद नरमा गयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी
हर किसी को ना आए समझ हया
हर कोई बूझे ना सावन मांगे दया
सुप्त भाव तरंगे उभर नव अरमां भयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी।
धीरेन्द्र सिंह
19.07.2023
08.15
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