मंगलवार, 24 मई 2022

आघात

ना आदर का ही है भूखा कहे बस सत्य लगे रूखा एक आघात ही निर्माण है सजगता तो बस एकमुखा क्यों चर्चा हो कहीं अक्सर क्यों बातें दे अक्सर झुका अपनी जिंदगी जी लीजिए समय से है तिमिर बुझा बस राह थी उपवन भरी कदमों में खुश्बू को लुका मढ़ लिए थे गगन हृदय में यामिनी मन गहि ढुका । धीरेन्द्र सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें