ना आदर का ही है भूखा
कहे बस सत्य लगे रूखा
एक आघात ही निर्माण है
सजगता तो बस एकमुखा
क्यों चर्चा हो कहीं अक्सर
क्यों बातें दे अक्सर झुका
अपनी जिंदगी जी लीजिए
समय से है तिमिर बुझा
बस राह थी उपवन भरी
कदमों में खुश्बू को लुका
मढ़ लिए थे गगन हृदय में
यामिनी मन गहि ढुका ।
धीरेन्द्र सिंह
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